एक राजा ने किसी विद्वान् से जानना चाहा कि ' गरीब की हाय ' क्या है , इससे क्या होता है ?
विद्वान् ने इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए तीन माह का समय माँगा l उसने राजा से कहा --- महाराज ! इस प्रश्न का उत्तर मैं आपको किसी जंगल में दूंगा l अत: आपको 500 सैनिक साथ लेकर चलना होगा l " राजा को तो प्रश्न का उत्तर जानना था अत: मंत्रियों को राज कार्य समझा दिया और सैनिकों समेत जंगल को प्रस्थान किया l
घने जंगल में पहुंचे जहाँ मनुष्य तो क्या पक्षियों की बोली भी बहुत कम ही सुनाई देती थी l विद्वान् ने कहा --- यहीं ठहरना ठीक है l राजा की आज्ञा से सैनिकों ने वहीँ तम्बू लगाया , भोजन आदि व्यवस्था की l अब विद्वान् ने कहा --- राजन ! मैं आपके प्रश्न का उत्तर दूंगा , लेकिन यह सामने वाला बरगद का पेड़ इसमें सबसे बड़ी बाधा है l यह पेड़ जब तक जड़ सहित अपने आप न गिर जाये तब तक मैं आपके प्रश्न का उत्तर नहीं बता सकता l अत: आप इन 500 सैनिकों को उस हरे - भरे पेड़ की देख - रेख में तैनात कर दें l यह सख्त आदेश दें कि जब तक पेड़ सूख न जाये कोई भी सैनिक वहां से हटे नहीं और उस पेड़ को नष्ट करने के लिए उस पर किसी शस्त्र का प्रयोग न करें l जैसा विद्वान् ने कहा राजा ने सब वैसा कर दिया l अब 500 सैनिक उस पेड़ की देख - रेख में लग गए और महाराज स्वयं उस पेड़ के सूखने की राह देखने लगे l
दो - तीन दिन जैसे - तैसे बीते लेकिन दिन भर जून की तपती धूप, लू और पानी की कमी से वे बड़े व्याकुल हो गए l सोते - जागते , उठते - बैठते , खाते -पीते उनके मुंह से यही निकलता --हाय ! ये पेड़ कब सूखेगा ? कब हम अपने घर जायेंगे ? बच्चों से मिलेंगे ? वे 500 जवान उस पेड़ के लिए ह्रदय से दुःखी हो गए l हाय ! ये पेड़ कब सूखेगा ?
किसे विश्वास था कि यह सैकड़ों वर्षों में गिरने वाला पेड़ जल्दी ही सूखकर गिर जायेगा l लेकिन यह क्या ? तीन महीने भी नहीं हुए कि पेड़ के तमाम पत्ते सूखकर झड़ गए , सबको कुछ आशा बंधी l पूरे छह माह भी समाप्त नहीं हुए कि वह पेड़ जड़ सहित जमीन पर गिर गया l सबकी खुशी का पार न रहा l एक सिपाही ने खुशी के मारे दौड़कर राजा को यह संदेश भी सुना दिया कि श्रीमान , बरगद का पेड़ जड़ सहित अपने आप गिर गया l राजा और विद्वान् बड़ी उत्सुकता से देखने आये l सब देखकर विद्वान् ने सैनिकों से पूछा --- " तुमने इस हजारों वर्षों में नष्ट होने वाले पेड़ को कैसे गिरा दिया ? क्या तुमने किसी शस्त्र की सहायता से ऐसा किया ?
वे सब बोले -- " महाराज !यह तो अपने आप ही गिर पड़ा l हमने कोई शस्त्र का प्रयोग नहीं किया l हाँ ! हम सोते - जागते यह अवश्य कहते रहे कि हाय ! ये पेड़ सूख जाये , तब हम अपने घर जाएँ l तब विद्वान् ने कहा ,-- " राजन ! जिस प्रकार यह हजारों वर्षों में नष्ट होने वाला पेड़ 500 जवानों की 'हाय ' खाकर अपने आप जड़ सहित गिर पड़ा , उसी प्रकार आदमी भी दीन - दुःखियों को सता कर , अनेकों की 'हाय' खाकर अपने आप ही नष्ट हो जाता है l " राजा भी समझ गया कि हाय से क्या नहीं नाश को प्राप्त हो सकता ?
विद्वान् ने इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए तीन माह का समय माँगा l उसने राजा से कहा --- महाराज ! इस प्रश्न का उत्तर मैं आपको किसी जंगल में दूंगा l अत: आपको 500 सैनिक साथ लेकर चलना होगा l " राजा को तो प्रश्न का उत्तर जानना था अत: मंत्रियों को राज कार्य समझा दिया और सैनिकों समेत जंगल को प्रस्थान किया l
घने जंगल में पहुंचे जहाँ मनुष्य तो क्या पक्षियों की बोली भी बहुत कम ही सुनाई देती थी l विद्वान् ने कहा --- यहीं ठहरना ठीक है l राजा की आज्ञा से सैनिकों ने वहीँ तम्बू लगाया , भोजन आदि व्यवस्था की l अब विद्वान् ने कहा --- राजन ! मैं आपके प्रश्न का उत्तर दूंगा , लेकिन यह सामने वाला बरगद का पेड़ इसमें सबसे बड़ी बाधा है l यह पेड़ जब तक जड़ सहित अपने आप न गिर जाये तब तक मैं आपके प्रश्न का उत्तर नहीं बता सकता l अत: आप इन 500 सैनिकों को उस हरे - भरे पेड़ की देख - रेख में तैनात कर दें l यह सख्त आदेश दें कि जब तक पेड़ सूख न जाये कोई भी सैनिक वहां से हटे नहीं और उस पेड़ को नष्ट करने के लिए उस पर किसी शस्त्र का प्रयोग न करें l जैसा विद्वान् ने कहा राजा ने सब वैसा कर दिया l अब 500 सैनिक उस पेड़ की देख - रेख में लग गए और महाराज स्वयं उस पेड़ के सूखने की राह देखने लगे l
दो - तीन दिन जैसे - तैसे बीते लेकिन दिन भर जून की तपती धूप, लू और पानी की कमी से वे बड़े व्याकुल हो गए l सोते - जागते , उठते - बैठते , खाते -पीते उनके मुंह से यही निकलता --हाय ! ये पेड़ कब सूखेगा ? कब हम अपने घर जायेंगे ? बच्चों से मिलेंगे ? वे 500 जवान उस पेड़ के लिए ह्रदय से दुःखी हो गए l हाय ! ये पेड़ कब सूखेगा ?
किसे विश्वास था कि यह सैकड़ों वर्षों में गिरने वाला पेड़ जल्दी ही सूखकर गिर जायेगा l लेकिन यह क्या ? तीन महीने भी नहीं हुए कि पेड़ के तमाम पत्ते सूखकर झड़ गए , सबको कुछ आशा बंधी l पूरे छह माह भी समाप्त नहीं हुए कि वह पेड़ जड़ सहित जमीन पर गिर गया l सबकी खुशी का पार न रहा l एक सिपाही ने खुशी के मारे दौड़कर राजा को यह संदेश भी सुना दिया कि श्रीमान , बरगद का पेड़ जड़ सहित अपने आप गिर गया l राजा और विद्वान् बड़ी उत्सुकता से देखने आये l सब देखकर विद्वान् ने सैनिकों से पूछा --- " तुमने इस हजारों वर्षों में नष्ट होने वाले पेड़ को कैसे गिरा दिया ? क्या तुमने किसी शस्त्र की सहायता से ऐसा किया ?
वे सब बोले -- " महाराज !यह तो अपने आप ही गिर पड़ा l हमने कोई शस्त्र का प्रयोग नहीं किया l हाँ ! हम सोते - जागते यह अवश्य कहते रहे कि हाय ! ये पेड़ सूख जाये , तब हम अपने घर जाएँ l तब विद्वान् ने कहा ,-- " राजन ! जिस प्रकार यह हजारों वर्षों में नष्ट होने वाला पेड़ 500 जवानों की 'हाय ' खाकर अपने आप जड़ सहित गिर पड़ा , उसी प्रकार आदमी भी दीन - दुःखियों को सता कर , अनेकों की 'हाय' खाकर अपने आप ही नष्ट हो जाता है l " राजा भी समझ गया कि हाय से क्या नहीं नाश को प्राप्त हो सकता ?
No comments:
Post a Comment