एक बार विधाता ने जय और विजय को एक जिम्मेदारी सौंपी l जाओ ! पता लगाकर आओ कि धरती पर स्वर्ग का सच्चा अधिकारी कौन है l उनने सब ओर भ्रमण किया पर सभी को कामना वश पूजा - उपासना में लिप्त पाया l एक घनघोर जंगल से एक मार्ग गुजरता था l वहां उन्होंने एक वृद्ध को देखा जो दीपक जलाये बैठा था l कुछ जल के पात्र भी रखे थे l उधर से निकलने वालों को वह रास्ता भी दिखाता और जल भी पिलाता l सारी रात पथिकों को मार्ग दिखने वाले उस वृद्ध से उन्होंने प्रात:काल पूछा --- " आप प्रात: की उपासना नहीं करते ? " वृद्ध ने कहा -- मैं यह नहीं जनता - " यह क्या होती है , मैं तो यह भी नहीं जानता कि उपासना से स्वर्ग मिलता है l मेरी तो सारी रात राहगीरों को राह दिखाने में बीत जाती है और दिन विश्राम करने में l "
दोनों ने विधाता के पास जाकर सारा विवरण सुनाया , जब विधाता इस वृद्ध के विषय में पढ़ने लगे तो दोनों बोले --- ' इस वृद्ध को पूजा - उपासना कुछ नहीं मालूम , इसे छोडिए l"
विधाता बोले ---- " जय - विजय ! मेरी द्रष्टि में एकमात्र यही व्यक्ति स्वर्ग का अधिकारी है l ईश्वर का नाम लेने की अपेक्षा उसकी व्यवस्था में हाथ बंटाना अधिक पुण्य देता है l "
दोनों ने विधाता के पास जाकर सारा विवरण सुनाया , जब विधाता इस वृद्ध के विषय में पढ़ने लगे तो दोनों बोले --- ' इस वृद्ध को पूजा - उपासना कुछ नहीं मालूम , इसे छोडिए l"
विधाता बोले ---- " जय - विजय ! मेरी द्रष्टि में एकमात्र यही व्यक्ति स्वर्ग का अधिकारी है l ईश्वर का नाम लेने की अपेक्षा उसकी व्यवस्था में हाथ बंटाना अधिक पुण्य देता है l "
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