राम कथा उनसे पहले भी प्रचलित थी , लेकिन संस्कृत में ही l जान साधारण को उससे न तो प्रेरणा मिलती थी और न ही दिशा l गोस्वामी जी ने रामकथा के इर्द - गिर्द खींची गई इन रेखाओं को मिटाया और उसे सार्वजनीन बनाया l तुलसीदास जी ने मध्यकाल के उस अंधकार युग में रामकथा को संबल बनाया और उसमे आश्रय ग्रहण करने की प्रेरणा दी l लोगों ने उस आश्रय को ग्रहण भी किया l तुलसी की राम कथा किसी भी समय , परिस्थिति और समस्या में उपचार की तरह सामने आती है l
हिंदू और इस्लाम दोनों ही धर्मों के लोग उनका सम्मान करते थे l अब्दुर्रहीम खानखाना से उनकी मित्रता विख्यात थी l रहीम ने मानस के संबंध में कुछ पद भी रचे और कहा यह काव्य हिन्दुओं के लिए वेद और मुसलमानों के लिए कुरान है ' हिन्दुआन को वेदा सम , तुरुकहि प्रगट कुरान l '
अकबर के नवरत्नों में से टोडरमल तुलसीदास जी के प्रति अगाध श्रद्धा रखते थे l उनके सहयोग से ही गोस्वामी जी ने राम जन्म भूमि स्थल के दक्षिण द्वार के पास बैठकर राम कथा कही थी l
उनके कुछ विरोधियों ने मानस को नष्ट करने की चेष्टा की , चुराने के लिए चोर भेजे l जन श्रुति है कि चोर जब उनकी कुटिया में घुसने लगे तो दो धनुर्धारियों को पहरा देते देख वापस चले गए l ये धनुर्धारी राम और लक्ष्मण ही थे l अपने इष्ट को पहरा देते देख उन्हें कष्ट नहीं होने देने के लिए गोस्वामी जी ने मानस की प्रति राजा टोडरमल के यहाँ रखवा दी l ऐतिहासिक तथ्य है कि विरोध का समाहार करने के लिए गोस्वामी जी को टोडरमल , रहीम , आचार्य मधुसूदन आदि विद्वद्जनों ने सहायता की थी l
एक स्थान पर तुलसीदास जी नाथपंथियों की आलोचना भी करते हैं l उनका कहना था कि योगतंत्र और शरीर साधनाओं में ऊर्जावान चित , स्थिर मन: स्थिति और सुदृढ़ मनोभूमि चाहिए l सौ में से एक - दो साधक ही यह स्थिति अर्जित कर पाते हैं l इसलिए जन सामान्य भक्ति मार्ग अपनाकर ही अपना आत्मिक विकास कर सकता है l
तुलसीदास जी का यह दोहा प्रख्यात है ----
हम चाकर रघुवीर के , पट्यौ लिख्यौ दरबार
तुलसी अब का होहिंगे , नर के मनसबदार l
हिंदू और इस्लाम दोनों ही धर्मों के लोग उनका सम्मान करते थे l अब्दुर्रहीम खानखाना से उनकी मित्रता विख्यात थी l रहीम ने मानस के संबंध में कुछ पद भी रचे और कहा यह काव्य हिन्दुओं के लिए वेद और मुसलमानों के लिए कुरान है ' हिन्दुआन को वेदा सम , तुरुकहि प्रगट कुरान l '
अकबर के नवरत्नों में से टोडरमल तुलसीदास जी के प्रति अगाध श्रद्धा रखते थे l उनके सहयोग से ही गोस्वामी जी ने राम जन्म भूमि स्थल के दक्षिण द्वार के पास बैठकर राम कथा कही थी l
उनके कुछ विरोधियों ने मानस को नष्ट करने की चेष्टा की , चुराने के लिए चोर भेजे l जन श्रुति है कि चोर जब उनकी कुटिया में घुसने लगे तो दो धनुर्धारियों को पहरा देते देख वापस चले गए l ये धनुर्धारी राम और लक्ष्मण ही थे l अपने इष्ट को पहरा देते देख उन्हें कष्ट नहीं होने देने के लिए गोस्वामी जी ने मानस की प्रति राजा टोडरमल के यहाँ रखवा दी l ऐतिहासिक तथ्य है कि विरोध का समाहार करने के लिए गोस्वामी जी को टोडरमल , रहीम , आचार्य मधुसूदन आदि विद्वद्जनों ने सहायता की थी l
एक स्थान पर तुलसीदास जी नाथपंथियों की आलोचना भी करते हैं l उनका कहना था कि योगतंत्र और शरीर साधनाओं में ऊर्जावान चित , स्थिर मन: स्थिति और सुदृढ़ मनोभूमि चाहिए l सौ में से एक - दो साधक ही यह स्थिति अर्जित कर पाते हैं l इसलिए जन सामान्य भक्ति मार्ग अपनाकर ही अपना आत्मिक विकास कर सकता है l
तुलसीदास जी का यह दोहा प्रख्यात है ----
हम चाकर रघुवीर के , पट्यौ लिख्यौ दरबार
तुलसी अब का होहिंगे , नर के मनसबदार l
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