' कलि काल कुठार लिए फिरता , तुझसे वह चोट झिली न झिली ,
भेज ले हरि नाम अरे रसना , फिर अंत समय में हिली न हिली l
कहते हैं -- मौत के अनेक बहाने होते हैं , लेकिन जीवन रक्षा के अनेक सहारे होते हैं l एक आखिरी सहारा ईश्वर का होता है l द्रोपदी चीर हरण के वक्त जब तक सभासदों से अनुनय - विनय करती रही , अपने वीर पति की वीरता की दुहाई देती रही तब तक भगवान नहीं आये l जब वह सारे प्रयास कर के थक गई और श्रद्धा व विश्वास से भगवान को पुकारा तब भगवान दौड़े चले आये l
भगवान आते तो अवश्य हैं , हम उन्हें प्रेम से पुकारें तो l
आज की संसार की परिस्थिति देखें तो लगता है सर्वशक्तिमान प्रकृति माँ हमसे नाराज हैं , क्रोधित हो रहीं हैं l उनकी नाराजगी को दूर करने का एक ही तरीका है ----- ' एक निर्धारित समय ' पर हम सब एक साथ बोलकर या मानसिक रूप से गायत्री मन्त्र का जप करें या अपनी सुविधा अनुसार जो भी आपकी पूजा विधि हो उससे अपने ईश्वर की , उस सर्व शक्तिमान अज्ञात शक्ति की प्रार्थना करें l और साथ ही अपनी किसी एक बुरी आदत को छोड़ने का संकल्प लें l
हमारे भीतर बुराइयां तो बहुत हैं , सबको एक साथ छोड़ना बहुत कठिन है l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है ---- हम अपने दोषों को एक - एक कर के दूर करें l एक अवगुण त्यागें और उसके खाली हुए स्थान पर एक सद्गुण ग्रहण करें l इस तरह धीरे - धीरे हमारा व्यक्तित्व परिष्कृत होता जायेगा l
भेज ले हरि नाम अरे रसना , फिर अंत समय में हिली न हिली l
कहते हैं -- मौत के अनेक बहाने होते हैं , लेकिन जीवन रक्षा के अनेक सहारे होते हैं l एक आखिरी सहारा ईश्वर का होता है l द्रोपदी चीर हरण के वक्त जब तक सभासदों से अनुनय - विनय करती रही , अपने वीर पति की वीरता की दुहाई देती रही तब तक भगवान नहीं आये l जब वह सारे प्रयास कर के थक गई और श्रद्धा व विश्वास से भगवान को पुकारा तब भगवान दौड़े चले आये l
भगवान आते तो अवश्य हैं , हम उन्हें प्रेम से पुकारें तो l
आज की संसार की परिस्थिति देखें तो लगता है सर्वशक्तिमान प्रकृति माँ हमसे नाराज हैं , क्रोधित हो रहीं हैं l उनकी नाराजगी को दूर करने का एक ही तरीका है ----- ' एक निर्धारित समय ' पर हम सब एक साथ बोलकर या मानसिक रूप से गायत्री मन्त्र का जप करें या अपनी सुविधा अनुसार जो भी आपकी पूजा विधि हो उससे अपने ईश्वर की , उस सर्व शक्तिमान अज्ञात शक्ति की प्रार्थना करें l और साथ ही अपनी किसी एक बुरी आदत को छोड़ने का संकल्प लें l
हमारे भीतर बुराइयां तो बहुत हैं , सबको एक साथ छोड़ना बहुत कठिन है l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है ---- हम अपने दोषों को एक - एक कर के दूर करें l एक अवगुण त्यागें और उसके खाली हुए स्थान पर एक सद्गुण ग्रहण करें l इस तरह धीरे - धीरे हमारा व्यक्तित्व परिष्कृत होता जायेगा l
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