यह धरती , यह मिटटी हमें ईश्वरीय देन है , विज्ञान की कोई भी प्रयोगशाला इस मिटटी को बना नहीं सकती , फिर भी मनुष्य अहंकार करता है l विशाल भूभाग को मनुष्य ने अपनी सुविधा के लिए नक़्शे बनाकर विभिन्न देशों और विभिन्न क्षेत्रों में बाँट लिया है l यह भी श्रम विभाजन ही है जो उचित भी है लेकिन इन सबसे अलग हटकर मनुष्य ने स्वार्थ और लालच के वशीभूत होकर इस अर्थ को ' अर्थ ' ( धन ) के अनुसार दो हिस्सों में बाँट लिया है --- एक ओर सब अमीर हैं और दूसरी ओर सब गरीब हैं l यही इस धरती पर अशांति का सबसे बड़ा कारण है l
अमीर व्यक्ति चाहे किसी भी देश के हों , किसी भी विभाग के हों , वे सब एक हैं , सब की एक सी प्रवृति है , गरीबों और कमजोर का शोषण करके ही कोई इतना अमीर बनता है और वे सब अपनी इस सम्पदा को दिन - प्रतिदिन बढ़ाना चाहते हैं , किसी भी कीमत पर इसे खोना नहीं चाहते , यह खोने का भय इनके तनाव का सबसे बड़ा कारण है l
यह एक विडम्बना ही है अमीरों की अमीरी , भोग - विलास सभी कुछ गरीब और कमजोरों के बिना चल नहीं सकता l घरेलू काम - काज से लेकर , फैक्ट्री के काम , भोजन , सफाई आदि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में वे इन्ही लोगों पर निर्भर हैं , एक प्रकार से परजीवी हैं l 'धन बहुत महत्वपूर्ण है , लेकिन केवल धन से जीवन नहीं चलता l
यही कारण है कि ये लोग विभिन्न तरीकों से गरीबों का शोषण कर उन्हें गरीब ही बनाये रखते हैं , उन्हें किसी भी तरह आगे बढ़ने का , जागरूक होने का मौका नहीं देते l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी इसी को दुर्बुद्धि कहते हैं l वे कहते हैं हम सब एक माला के मोती है ' l अमीर हो या गरीब , पेड़ - पौधे , वनस्पति , पशु - पक्षी सम्पूर्ण पर्यावरण ये सब इस माला के मनके हैं , मोती हैं, जो परस्पर निर्भर हैं l एक भी मोती ख़राब होगा तो माला का अस्तित्व खतरे में पड़ जायेगा l सुख - शांति और तनाव रहित जीवन जीने के लिए सबके साथ संतुलन बना कर चलना होगा l
अमीर व्यक्ति चाहे किसी भी देश के हों , किसी भी विभाग के हों , वे सब एक हैं , सब की एक सी प्रवृति है , गरीबों और कमजोर का शोषण करके ही कोई इतना अमीर बनता है और वे सब अपनी इस सम्पदा को दिन - प्रतिदिन बढ़ाना चाहते हैं , किसी भी कीमत पर इसे खोना नहीं चाहते , यह खोने का भय इनके तनाव का सबसे बड़ा कारण है l
यह एक विडम्बना ही है अमीरों की अमीरी , भोग - विलास सभी कुछ गरीब और कमजोरों के बिना चल नहीं सकता l घरेलू काम - काज से लेकर , फैक्ट्री के काम , भोजन , सफाई आदि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में वे इन्ही लोगों पर निर्भर हैं , एक प्रकार से परजीवी हैं l 'धन बहुत महत्वपूर्ण है , लेकिन केवल धन से जीवन नहीं चलता l
यही कारण है कि ये लोग विभिन्न तरीकों से गरीबों का शोषण कर उन्हें गरीब ही बनाये रखते हैं , उन्हें किसी भी तरह आगे बढ़ने का , जागरूक होने का मौका नहीं देते l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी इसी को दुर्बुद्धि कहते हैं l वे कहते हैं हम सब एक माला के मोती है ' l अमीर हो या गरीब , पेड़ - पौधे , वनस्पति , पशु - पक्षी सम्पूर्ण पर्यावरण ये सब इस माला के मनके हैं , मोती हैं, जो परस्पर निर्भर हैं l एक भी मोती ख़राब होगा तो माला का अस्तित्व खतरे में पड़ जायेगा l सुख - शांति और तनाव रहित जीवन जीने के लिए सबके साथ संतुलन बना कर चलना होगा l
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