चाहे कोई भगवान का कितना भी बड़ा भक्त हो , कर्म फल से कोई नहीं बचा है l जब धरती पर पाप बहुत बढ़ जाता है तब भगवान स्वयं जन्म लेते हैं पापियों का नाश करने के लिए l जब दसों दिशाओं में रावण का आतंक था , तब भगवान राम का जन्म हुआ l उस समय ऋषियों के चिंतन में यह बात थी की रावण तो सपरिवार परम शिव भक्त है , तो क्या प्रभु स्वयं अवतार लेकर अपने ही भक्त का विनाश करेंगे ? तब भगवान भोलेनाथ ने ऋषियों से कहा --- ' हे ऋषिगण ! पूजा के कर्मकांड को भक्ति नहीं कहा जा सकता l भक्ति तो पवित्र भावनाओं में वास करती है l जो भक्त है , उसकी संवेदना का विस्तार तो सृष्टिव्यापी होता है , भला वह कैसे किसी का उत्पीड़न कर सकेगा l रावण भक्त नहीं , तपस्वी है l आज उसे अपने तप का फल मिल रहा है , परन्तु उसकी संवेदना को उसके अहंकार ने निगल लिया है l फिर यदि किन्ही अर्थों में वह मेरा भक्त भी है तो अपने भक्त का उद्धार करना मेरा ही दायित्व है l ' युद्ध से पूर्व जब रावण ने शक्ति पूजा की तब देवी ने उसे वरदान दिया था --- ' तुम्हारा कल्याण हो l ' रावण का अंत होने में ही उसका कल्याण था l
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