पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं - " मनुष्य की सबसे बड़ी भूल है स्वयं को बंदर की औलाद समझना l इस कारण हम अपने स्वरुप , कर्तव्य और उद्देश्य को भूल गए l जब हम स्वयं को ईश्वर की श्रेष्ठ संतान मानेंगे तभी हमारे कर्म , हमारा आचरण श्रेष्ठ होगा और उसके परिणाम भी सुखदायी होंगे ' विकास की प्रक्रिया में हमने यह माना कि हम अपनी प्रारम्भिक अवस्था में बंदर थे , विकसित होकर इस रूप में आ गए l ऐसा मानकर हमने भौतिक प्रगति तो बहुत की l विज्ञान ने हमें इतनी सुख - सुविधाएँ दीं जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी l लेकिन चेतना के स्तर पर हम कहाँ पहुंचे हैं ? संसार में बढ़ते अपराध , आतंक , युद्ध , छीना - झपटी ------- ------------------------------------- आचार्य श्री लिखते हैं ---- ' जब अपने से बड़ी शक्ति के साथ संबंध जोड़ने की महत्ता को छोटे बच्चे तक समझते हैं , फिर मनुष्य भगवान को घनिष्ठ बनाने में इतनी उपेक्षा क्यों बरतता है l ' केवल कर्मकांड कर के ही मनुष्य अपने आस्तिक होने का दिखावा करता है , आंतरिक परिष्कार नहीं करता l
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