पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है ---- ' भूलों से कहीं अधिक घातक होते हैं बुरे इरादे l इनके दुष्परिणाम ज्यादा बुरे व हानिकारक होते हैं l व्यक्ति की नियत में भ्रष्टता के तत्व घुस पड़ते हैं l बाद में ये ही जाने - अनजाने ऐसे कृत्य कराते हैं , जिन्हे भूलें कह देने भर से काम नहीं चलता l दुष्ट इरादों का विष इनमे साफ़ झलकता है l l ये इरादे ही मनुष्य के वास्तविक व्यक्तित्व का सृजन करते हैं l चिंतन इसी आधार पर दिशा पकड़ता है और गतिविधियों का निर्माण इसी प्रेरणा से बन पड़ता है l '
आचार्य श्री लिखते हैं ---- ये इरादे सकारात्मक हैं तो अध्यात्म की भाषा में इन्हे श्रद्धा या आस्था आदि नाम से पुकारा जाता है l ईमान या नियत इसी का नाम है l
यदि ये अनैतिक व असामाजिक हैं तो उनका निराकरण व्यक्ति को स्वयं ही करना चाहिए l
जिस प्रकार दूसरों का पर्यवेक्षण तीखी दृष्टि से किया जाता है , उसी तरह अपना भी किया जा सके तो वे कमियां भी समझ में आती हैं जो सामान्य क्रम में दिखाई ही नहीं पड़ती l आत्म समीक्षा जरुरी है और इसका पहला चरण है -- --अपनी नियत में मानवीय स्तर से नीचे के जो भी तत्व घुस पड़े हों उन्हें समझा जाये और उन्हें निरस्त करने का दृढ़ निश्चय किया जाये l
आचार्य श्री लिखते हैं ---- ये इरादे सकारात्मक हैं तो अध्यात्म की भाषा में इन्हे श्रद्धा या आस्था आदि नाम से पुकारा जाता है l ईमान या नियत इसी का नाम है l
यदि ये अनैतिक व असामाजिक हैं तो उनका निराकरण व्यक्ति को स्वयं ही करना चाहिए l
जिस प्रकार दूसरों का पर्यवेक्षण तीखी दृष्टि से किया जाता है , उसी तरह अपना भी किया जा सके तो वे कमियां भी समझ में आती हैं जो सामान्य क्रम में दिखाई ही नहीं पड़ती l आत्म समीक्षा जरुरी है और इसका पहला चरण है -- --अपनी नियत में मानवीय स्तर से नीचे के जो भी तत्व घुस पड़े हों उन्हें समझा जाये और उन्हें निरस्त करने का दृढ़ निश्चय किया जाये l
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