' हम सब एक ही मोतियों के हार में गुँथे हुए हैं l ईश्वर सभी जीवों के हृदय में छिपा हुआ है , उस धागे की भांति है जो मोतियों के हार में उन मोतियों को परस्पर जोड़ता है l '
जब लोग इस सच्चाई को जानते हुए भी अनजान रहते हैं और अपने अहंकार के वशीभूत होकर धर्म , जाति , ऊंच - नीच , अमीर - गरीब , रंगरूप आदि विभिन्न कारणों से समाज में अन्याय और अत्याचार करते हैं , निर्दोष को सताना , छोटे - छोटे बच्चों पर अमानुषिक अत्याचार , मूक पशु - पक्षियों की हत्या और सम्पूर्ण पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं l समाज को दिशा देने वाले भी अपनी - अपनी दुकान बचाने में , अपना स्वार्थ सिद्ध करने में तत्पर रहते हैं l तब प्रकृति क्रोधित हो जाती है l शिवजी का तीसरा नेत्र खुल जाता है और तब ' गेंहू के साथ घुन भी पिसता है l '
अत्याचार करने वाले और उसे चुपचाप मूक - दर्शक की भांति देखने वाले बराबर के अपराधी हैं l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं --- 'मनुष्य सच्चा इनसान बने , स्वार्थ के स्थान पर पुण्य - परमार्थ की प्रवृति को जगाये , भौतिक प्रगति के साथ चेतना का स्तर ऊँचा हो यही सच्ची प्रगतिशीलता है l '
आचार्य श्री लिखते हैं --- ' मनुष्य में सन्मार्ग पर चलने की स्वाभाविक इच्छा होती है l यदि इस प्रवृति को निरंतर पुष्ट किया जाता रहे तो मनुष्य ऊंचाइयों के शिखर पर चढ़ता जाता है l इसमें ढिलाई बरतने पर बिना मांजे बर्तन की तरह वह मैला भले हो हो जाये पर उसकी वह वृत्ति मरती नहीं है l "
लेकिन जब मनुष्य पर दुर्बुद्धि का प्रकोप होता है , अनैतिक और अमर्यादित कार्यों से वह ईश्वर के अनुशासन को चुनौती देने लगता है तब प्रकृति के डंडे से ही उसकी दुर्बुद्धि सद्बुद्धि में बदलने लगती है l
जब लोग इस सच्चाई को जानते हुए भी अनजान रहते हैं और अपने अहंकार के वशीभूत होकर धर्म , जाति , ऊंच - नीच , अमीर - गरीब , रंगरूप आदि विभिन्न कारणों से समाज में अन्याय और अत्याचार करते हैं , निर्दोष को सताना , छोटे - छोटे बच्चों पर अमानुषिक अत्याचार , मूक पशु - पक्षियों की हत्या और सम्पूर्ण पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं l समाज को दिशा देने वाले भी अपनी - अपनी दुकान बचाने में , अपना स्वार्थ सिद्ध करने में तत्पर रहते हैं l तब प्रकृति क्रोधित हो जाती है l शिवजी का तीसरा नेत्र खुल जाता है और तब ' गेंहू के साथ घुन भी पिसता है l '
अत्याचार करने वाले और उसे चुपचाप मूक - दर्शक की भांति देखने वाले बराबर के अपराधी हैं l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं --- 'मनुष्य सच्चा इनसान बने , स्वार्थ के स्थान पर पुण्य - परमार्थ की प्रवृति को जगाये , भौतिक प्रगति के साथ चेतना का स्तर ऊँचा हो यही सच्ची प्रगतिशीलता है l '
आचार्य श्री लिखते हैं --- ' मनुष्य में सन्मार्ग पर चलने की स्वाभाविक इच्छा होती है l यदि इस प्रवृति को निरंतर पुष्ट किया जाता रहे तो मनुष्य ऊंचाइयों के शिखर पर चढ़ता जाता है l इसमें ढिलाई बरतने पर बिना मांजे बर्तन की तरह वह मैला भले हो हो जाये पर उसकी वह वृत्ति मरती नहीं है l "
लेकिन जब मनुष्य पर दुर्बुद्धि का प्रकोप होता है , अनैतिक और अमर्यादित कार्यों से वह ईश्वर के अनुशासन को चुनौती देने लगता है तब प्रकृति के डंडे से ही उसकी दुर्बुद्धि सद्बुद्धि में बदलने लगती है l
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