" दुःख में सुमिरन सब करें , सुख में करे न कोय l जो सुख में सुमिरन करे , दुःख काहे को होय l " श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान कहते हैं --- शुभ और अशुभ दोनों ही प्रकार के कर्मों का फल मनुष्य के लिए बाधक है l ' --------- इस तथ्य को समझाते हुए पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- शुभ कर्मों का फल भोगते - भोगते कर्तापन का अभिमान हो जाता है l भाग्य अच्छा होता है तो मिटटी भी सोना बन जाती है और फिर अहं और ऐश्वर्य सिर पर चढ़कर बोलने लगता है , जहाँ खड़ा हो जाता है वहां जय - जयकार होने लगती है l राजनीति , समाजतन्त्र , धर्मतंत्र में कई ऐसे व्यक्ति देखे जाते हैं , जिनके शुभ फलों का उदय होते ही वे छलांग लगाने लगते हैं , रातोंरात चर्चित हो जाते हैं , पर यह सब स्थायी नहीं है l अशुभ फल जब पैदा होते हैं तो हर जगह विपदा ही विपदा नजर आती है , अपमान , षड्यंत्रों की श्रंखला आ जाती है l हमें अशुभ के क्षणों में शुभ की तैयारी करते रहना चाहिए और शुभ के क्षणों में , सुख के समय अशुभ के लिए भी तैयार रहना चाहिए l हम सुख के क्षणों को योगमय बना लें l सबको साझीदार बनाकर पुण्य बांटे l सुख में कभी भगवान को न भूलें l सुख आये तो उसे सहज रूप स्वीकार कर लें , बौराएँ नहीं और दुःख आए तो उसे तितिक्षा मानकर झेल लें l परमात्मा सबकी परीक्षा दुःखों के माध्यम से लेता है l
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