एक प्राचीन कथा है ----- एक अमीर व्यक्ति था l बहुत वैभव था उसके पास लेकिन वह फिर भी बहुत धन चाहता था और इस लालच में वह पुराने किले , सुनसान जगह में भी भटकता था कि कहीं से कोई गुप्त खजाना मिल जाये l ऐसी ही सोच - विचार में वह एक दिन जा रहा था कि उसे एक आवाज आई ---- ' क्या तुम्हे धन चाहिए ? ' ' धन ' शब्द सुनते ही वह चौकन्ना हो गया और बोला --- ' हाँ , मुझे धन चाहिए l ' तब आवाज ने कहा --- ' जा , घर लौट जा l घर के पिछवाड़े अमुक स्थान पर अशर्फियों से भरे सात घड़े तेरा इंतजार कर रहे हैं l " यह सुनकर वह बहुत प्रसन्न हुआ और दौड़ता हुआ घर आया , पत्नी को धीरे से कान में बताया और अँधेरी रात में जमीन खोदकर सातों घड़े निकाल लिए l अब धैर्य नहीं था , उत्साह में आकर वे घड़े खोलकर देखने लगे l छह घड़े सोने की अशर्फियों से भरे थे लेकिन सातवां घड़ा आधा खाली था l अब उन दोनों पति- पत्नी को सातवें घड़े को भरने की चिंता हो गई l अपनी जरूरतों को कम कर के उन्होंने घड़े को भरना शुरू किया लेकिन घड़ा भरने का नाम ही नहीं लेता l इस वजह से दोनों बहुत दुःखी थे l एक दिन एक साधु उनके घर आया , उन्हें चिंतित देखकर साधु ने पूछा --- " सांतवा घड़ा भरा या नहीं ? ' यह सुनकर दोनों पति - पत्नी आश्चर्यचकित रह गए कि यह बात साधु को कैसे मालूम हुई l तब साधु बोला ----- " बेटा ! यह सांतवा घड़ा तृष्णा का है , जो कभी पूरी नहीं होती l मनुष्य इस तृष्णा को साथ लिए दुनिया से विदा हो जाता है l तुम इस घड़े में कितना ही सोना डालो यह भरने वाला नहीं है l यह कहकर साधु चला गया l और साधु के जाते ही वे सातों घड़े भी गायब हो गए l अब वे दोनों बहुत पछताने लगे और सोचने लगे कि सातवें घड़े को भरने के बजाय वे इस धन को लोक - कल्याण में और दूसरों की पीड़ा के निवारण में लगाते तो यह जीवन सार्थक हो जाता l
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