कबीरदास जी कहते हैं ---- ' कबीर चन्दन पर जला , तीतर बैठा माहिं l हम तो दाझत पंख बिन , तुम दाझत हो काहिं ll कबीर कमाई आपनी , कबहु न निष्फल जाय l सात सिंधु आड़ा पड़े , मिले अगाड़ी आय ll अर्थात जलते हुए चंदन के पेड़ पर एक तीतर आकर बैठ गया और वह भी जलने लगा l पेड़ कहता है , हम तो इसलिए जल रहे हैं क्योंकि हमारे पास पंख नहीं हैं , हम उड़ नहीं सकते , पर तुम (तीतर ) तो पंख वाले हो , फिर तुम क्यों जलते हो ? तीतर उत्तर देता है कि अपना किया हुआ कर्म बेकार नहीं जाता l सात समुद्र की आड़ में रहें तो भी आगे आकर मिलता है l ' कर्मफल को बताने वाली एक कथा है ----- नारद जी एक बार भ्रमण करते हुए विष्णु लोक पहुंचे l भगवान को नमन कर उन्होंने कहा ---- ' भगवन ! आजकल धरती पर तो कर्मफल विधान के विपरीत परिणाम देखने को मिल रहे हैं l जिससे मुझे बड़ी हैरानी हुई है l ' भगवान विष्णु ने कहा --- नारद जी ! मुझे विस्तार से बताओ कि ऐसा आपने क्या देखा l ' नारद जी ने कहा --- ' भगवन ! एक बार मैं धरती पर भ्रमण कर रहा था तब मैंने देखा कि एक गाय जंगल में कीचड़ में धंस गई है और बाहर नहीं निकल पा रही है l तभी एक चोर वहां से निकला और गाय को बचाने के बजाय वह उस पर पैर रखकर निकल गया l जैसे ही वह आगे बढ़ा उसे पेड़ के नीचे सोने की मोहरों से भरी थैली मिली जिसे पाकर वह बहुत खुश हुआ l फिर मैंने देखा कि उसी मार्ग से एक साधु पुरुष जा रहे थे l कीचड़ में फँसी गाय को देखकर उनका हृदय करुणा से भर गया और कीचड़ में उतर कर बड़ी मेहनत से उन्होंने गाय को बाहर निकाला l गाय को बाहर निकालते समय जैसे ही वे आगे बढ़े तो वहां पड़े एक पत्थर के टकराने से वे गिर पड़े , जिससे उनके सिर पर गहरी चोट लग गई l नारद जी बोले -- ' भगवन ! ऐसा अनर्थ कैसे हुआ ? जो चोर था उसे सोने की मोहरें मिली और गाय की मदद करने वाले साधु पुरुष को सिर में चोट लगी l ' भगवान ने कहा --- ' पूर्व में किए गए एक शुभ कर्म के कारण चोर को सोने की मोहरें मिली , लेकिन उस साधु पुरुष की तो उसके पूर्व प्रारब्ध के कारण जंगल में मृत्यु लिखी थी , जो गाय की मदद करने के कारण टल गई l ' इस कथा से हमें यही प्रेरणा मिलती है कि हमारे द्वारा किए गए शुभ कर्म कभी निष्फल नहीं जाते l किसी न किसी रूप में हमें उनका पारितोषिक अवश्य मिलता है l
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