पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं ---- ' मनोबल ही जीवन है l वही सफलता और प्रसन्नता का उद्गम है l मन की दुर्बलता ही रोग , दुःख और मौत बनकर आगे आती है l ' एक समय था जब संसार के अधिकांश देश पराधीन थे l अपनी आजादी के लिए दृढ़ संकल्प लिया और संगठित प्रयास किया , अपने मनोबल को जगाया तो सब को पराधीनता से मुक्ति मिली , गुलामी की जंजीरें टूटी और आजादी मिली l आत्मबल से गुलामी से मुक्ति तो संभव है लेकिन यदि मन: स्थिति कमजोर है , आत्मबल नहीं है , परावलंबी हैं तो शक्तिशाली तत्व और असुरता उन्हें ' कठपुतली ' बना देती है l ऐसे में स्वयं निर्णय लेने की शक्ति नहीं होती l यदि आत्मबल नहीं है , अपनी कोई सोच ही नहीं है तो डोरी जिसके हाथ में होगी , वैसा ही दृश्य दिखाई देगा l
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