पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---' अहंकार नकारात्मक भाव की चरम सीमा है l अहंकारी चरम महत्वकांक्षी होता है और यह महत्वाकांक्षा केवल दिखने - झलकने की झूठी आकांक्षा है l महत्वकांक्षी की संवेदना - भावना पाषाणवत शुष्क होती है l इस बंजर भूमि में सदभावना का कोई बीज नहीं होता l अहंकारी केवल अपनी आत्मप्रशंसा के सर्वनाशी विनाश में हिचकोले खाता रहता है l ' धन - वैभव और पद पाकर किसे अहंकार नहीं होता , मन को थोड़ी सी ढील देने पर मानसिक कमजोरियाँ हावी हो जाती हैं l उम्र के किस पड़ाव पर इन कमजोरियों का आक्रमण हो कोई नहीं जानता l एक कथा है ---- एक राजा बहुत धर्मनिष्ठ , पराक्रमी थे , महत्वाकांक्षी थे l स्वार्थ और अहंकार ऐसा हावी हुआ कि प्रजा की सुरक्षा , संमृद्धि और सौहार्द की और ध्यान नहीं दिया तो राज्य में अराजकता फैलने लगी l यह देख कुलगुरु बड़े चिंतित हुए , उन्होंने राजा को प्रात:काल आश्रम में बुलवाया l उन दिनों कुलगुरु का बहुत था , उनके आदेश पर राजा आश्रम में पहुंचे l कुलगुरु को प्रणाम किया , राजा की आँखों में प्रश्न था , क्यों बुलाया ? कुलगुरु ने कहा ---- आओ , भ्रमण करते हैं , तुम्हारे प्रश्न का उत्तर भी मिल जायेगा l थोड़ी दूर चलने पर एक सरोवर था , गुरु ने उसमे से एक कमल का फूल तोड़कर राजा के हाथ में दिया , उसकी पंखुड़ियाँ बंद थीं , गुरु ने कहा ---- ' इसे खोल कर देखो l ' राजा ने जब पंखुड़ियाँ खोल कर देखा तो उसमें एक भौरा मारा मृत पड़ा था l राजा कुछ समझ नहीं पाया l वे लोग थोड़ा और आगे चले , एक सुन्दर वाटिका थी , एक भौंरा फूलों पर मंडरा रहा था l कुलगुरु ने कहा ---- ' इस भौंरे को ध्यान से देखो l ' राजा ने देखा कि भौंरे की गति में इतना बल था कि मँडराते हुए वह पत्तियों को छेदता हुआ आगे निकल गया l कुलगुरु बोले --- " राजन ! एक भौंरा अपने पराक्रम से पत्तियों में छेद करता हुआ आगे बढ़ जाता है लेकिन दूसरा भौंरा पुष्प की गंध से इतना मोहित है कि पंखुड़ियों के बीच में फंसकर अपनी जान दे देता है l इसी तरह अपनी मानसिक कमजोरियों से जकड़ा हुआ व्यक्ति अपना सारा तेज , पुण्य और पराक्रम खो बैठता है l " राजा को कुलगुरु का आशय समझ में आ गया l कुलगुरु ने कहा --- ' पद जितना बड़ा होता है , दायित्व उतने ही अधिक होते हैं l तुम एक राज्य के अधिपति हो , एक संस्था हो l व्यक्तिगत आकांक्षाओं की पूर्ति करने में सामाजिक उत्तरदायित्वों से विमुख न हो l अपने पद के साथ जुड़े दायित्वों का गरिमापूर्ण निर्वाह करो l "
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