पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " वाक् चातुरी और छल -बल से व्यक्ति को भले ही अपने वश में कर लिया जाये , पर हृदय अवश ही रहता है , किसी के मन को अपने वश में नहीं किया जा सकता है , जो और ज्यादा अनर्थ उत्पन्न करता है l " महाभारत का प्रसंग है ---- महाबली शल्य महाराज पाण्डु की दूसरी पत्नी माद्री के भाई थे और युद्ध में पांडवों का सहयोग करना चाहते थे किन्तु दुर्योधन के छल - बल और वाक् चातुर्य से वे वचनबद्ध हो गए और उन्हें कौरवों के साथ सहयोग करने को विवश होना पड़ा l वे कर्ण के सारथि बने , शल्य सोच रहे थे कि पूरी तरह से अन्याय को सहयोग देने की अपेक्षा यह विवशता है l किस तरह मैं धर्म और न्याय का समर्थन करूँ ? उन्हें अपने वचनबद्ध होने का बड़ा पश्चाताप था l उन्हें कोई उपाय समझ में नहीं आ रहा था कि उनके वचन की भी रक्षा हो जाए और हृदय भी इस अपराध- बोध से मुक्त हो जाए l इसी मानसिक द्वन्द में वह भगवान श्रीकृष्ण के पास गए l ' कृष्ण जी ने कहा ---- ' कर्ण बड़ा शूरवीर है , तुम उसके सारथि हो l इसलिए युद्ध में तुम कर्ण को निरुत्साहित करते रहना l निरुत्साहित व्यक्ति की आधी सामर्थ्य समाप्त हो जाती है l इस तरह तुम कौरवों के पक्ष में रहते हुए भी हमारे सहयोगी बन सकते हो l ' युद्ध में शल्य ने ऐसा ही किया l अर्जुन को सामने देखकर जब कर्ण ने हुंकार भरी और कहा --- " मैं अर्जुन को आज ही समाप्त कर दम लूंगा l " तो शल्य ने कहा --- " अर्जुन को मारना टेढ़ी खीर है l अर्जुन ने इंद्र से युद्ध करना सीखा है और भगवान शंकर से धर्नुविद्दा सीखी है l वनवास के तपस्वी जीवन ने उसे बहुत मजबूत बना दिया है l तुम उसे क्या हराओगे ? शल्य इसी तरह की बात कर कर्ण को हतोत्साहित करते रहे l दूसरी ओर महावीर , महादानी कर्ण को अपने सामने देख अर्जुन ने कहा --- " भगवन ! मैं कर्ण के सामने किस प्रकार टिक सकूंगा ? " तब कृष्ण ने अर्जुन को प्रोत्साहित करते हुए कहा -- " अर्जुन ! तुम जानते हो कि कर्ण को शंकर जी का शाप है कि वह अन्य वीरों के लिए भले ही अजेय हो , पर अर्जुन के सामने उसकी धर्नुविद्दा कोई काम नहीं करेगी l कर्ण चाहे शूरवीर है किन्तु वह अधर्म , अन्याय के साथ है इसलिए उसकी पराजय निश्चित है l " भगवान कृष्ण के वचन सुनकर अर्जुन के हौसले बढ़ गए , बड़े उत्साह से उसने युद्ध किया और कर्ण को अर्जुन के हाथों परास्त होना पड़ा l
No comments:
Post a Comment