एक प्रेरणाप्रद दृष्टांत है ----- एक ब्राह्मण थे , शिवजी के अनन्य भक्त , साथ ही निर्धनता की साक्षात् मूर्ति l सुबह चार बजे से शिवजी की पूजा आदि सब करते , उनकी पत्नी कूटना - पीसना कर घर का प्रबंध करती l सावन का महीना था l पंडित जी एक सहस्त्र एक बेलपत्र पर राम नाम लिखकर प्रतिदिन अत्यंत भक्ति पूर्वक शिवजी पर चढ़ाते थे l इस प्रकार उन्तीस दिन बीत गए l तीसवें दिन पंडित जी पूजा -पाठ में तल्लीन थे , संयोगवश उधर से शिव - पार्वती निकले l पार्वती जी को उस ब्राह्मण पर बहुत दया आई , उन्होंने शिवजी से कहा ---- " भगवान ! यह ब्राह्मण बहुत दिनों से आपकी भक्ति - पूजा कर रहा है और यह बहुत निर्धन है , इस पर कृपा करें l शिवजी ने कहा --- 'तुम ठीक कहती हो देवी ! इसने इस प्रकार जो मेरी सेवा की है , उसका पारिश्रमिक इसे आज सांयकाल तक मिल जायेगा l ठीक उसी समय एक सेठ लोभीमल वहां से निकला , उसने यह वार्तालाप सुना तो उसे बहुत लालच आ गया l वह सोचने लगा कि भगवान सहस्त्रों में देंगे तो क्यों न अवसर का लाभ उठाया जाये l लोभिमाल उस ब्राह्मण के घर पहुंचा और कहा ---- " आप अत्यंत निर्धन हैं l आपने सावन के महीने भर जो शिवजी की पूजा की है उसका पुण्य मुझे दे दो और बदले में ये सौ रूपये ले लो l निर्धनता के कारण ब्राह्मण व उसकी पत्नी राजी हो गए कि सौ रूपये से कुछ दिन तो काम चलेगा l श्रावण की पूर्णिमा थी लोभीमल बहुत प्रसन्न था , वह मंदिर में बैठ गया , उसे उम्मीद थी कि शिवजी असंख्य धन देंगे l आखिर रात के ग्यारह बज गए , उसके धैर्य ने जवाब दे दिया उसने क्रोध में अपने दोनों हाथ शिवजी की मूर्ति पर पटक दिए और बोला ---- " अरे ! अब तू भी झूठ बोलने लगा ! " उसके दोनों हाथ मूर्ति से चिपक गए l उसने छुड़ाने का बहुत परिश्रम किया किन्तु वह और मजबूती से चिपक गए , वह थक गया तो उसे नींद आ गई l स्वप्न में उसने देखा शंकर जी त्रिशूल लिए खड़े हैं , उसने भगवान से कहा --- भगवान , कृपा कर मेरे हाथ छुड़वाये l ' शिवजी ने कहा ---- ' सुबह तू मेरे ब्राह्मण भक्त को पचास हजार दे तो ये हाथ छूट जायेंगे अन्यथा ऐसे ही चिपके रहेंगे l " सुबह हुई वह ब्राह्मण पूजा के लिए मंदिर आया तो देखा कि लोभिमाल मूर्ति से चिपका है l उसने अपनी सारी व्यथा - कथा सुनाई और कहा --- 'मेरे पुत्र को कहलवाओ कि पचास हजार यहाँ ले आए l वह रुपया शंकर जी ने आपको दिलवाया है l ' इस प्रकार उस शिव भक्त को पचास हजार रूपये मिले तब लोभीमल का हाथ छूटा l ब्राह्मण की निर्धनता दूर हुई और शेष धन उसने और गरीबों व अपाहिजों में बाँट दिया l एक दिन पारवती जी ने शिवजी से पूछा --- ' भगवन ! आपने उस ब्राह्मण को कुछ दिया नहीं ? ' शंकर जी बोले ---- ' क्यों ? दिए तो पचास हजार रूपये l ' पारवती जी ने कहा --- ' वह तो लोभीमल ने दिए , आपने क्या दिया ? ' शिवजी बोले ---- " इसी प्रकार से तो मैं देता हूँ , अन्यथा मेरे पास भांग , धतूरा और नंदी बैल के सिवा और है ही क्या l "
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