हमारे महाकाव्य हमें बहुत कुछ सिखाते हैं l विशेष रूप से वर्तमान की जो बहुत बड़ी समस्या है ' तनाव ' उससे कैसे मुक्त रहा जाये , इस बात की शिक्षा भी हमें महाभारत से मिलती है l --- महाभारत का प्रसंग है -- जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ , वह दृश्य बहुत हृदय विदारक था , चारों ओर मौत का सन्नाटा था , बच्चे अनाथ और वृद्ध निराश्रित थे , ,घायल कराह रहे थे , विधवाओं का विलाप --यह सब महारानी द्रोपदी के लिए असहनीय था , उसका मन अशांत था l भगवान कृष्ण आये तो उसने रो -रोकर अपनी मानसिक व्यथा उनसे कही तब भगवान ने कहा --- द्रोपदी ! चीर -हरण के बाद तुम्हारे दिल में बदले की आग थी , तुमने अपने केश खुले रखे थे कि दुशासन के रक्त से केश धोकर ही तुम अपने केश सँवारोगी l तुम बदले की आग अपने हृदय में रखे रहीं , और वह बदला पूर्ण हुआ , उसी का यह परिणाम है l द्रोपदी बहुत विकल थी , उसका जो अपमान हुआ वह असहनीय था l भगवान ने उसे समझाया --- महाभारत तो विधि का विधान था , वह तो होना ही था l हर किसी को अपने कर्मों का फल मिलता है l कौरवों ने जो पाप किये उन्हें उसका दंड तो मिलना ही था , तुमने व्यर्थ ही बदले का भाव अपने दिल में रख कर तनाव मोल ले लिया l -- इस प्रसंग का यही शिक्षण है कि जीवन के सफर में सब को परिवार में या परिवार के बाहर ऐसे व्यक्ति मिलते हैं जिनके कारण बहुत कष्ट , दुःख और अपमान अनुभव होते है l अपनी मानसिकता के अनुसार कोई व्यक्ति स्वयं बदला लेते हैं , जो स्वयं बदला नहीं लेते वे ईश्वर से उन्हें दंड देने की प्रार्थना करते हैं l दोनों ही स्थिति में पीड़ित व्यक्ति की पूरी ऊर्जा इस नकारात्मक दिशा में लग जाती है l जीवन के बहुमूल्य वर्ष इसी आग में झुलसते हुए बीत जाते हैं l यदि हमें तनाव मुक्त रहना है तो बदले की भावना अपने मन में न रखें , अपनी ऊर्जा अपना जीवन संवारने में लगाएं , कर्म के सिद्धांत में विश्वास रखें , जिसने जैसा किया है , उसे उसका दंड अवश्य मिलेगा , हम अपने मन को मैला न करें l
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