सूफी संत अहमद बहुत नेक दिल इनसान थे l एक दिन उनका पड़ोसी बहराम रोता हुआ उनके पास आया l पूछने पर पता चला कि जब वह सौदे का माल ऊंटों पर लादकर ला रहा था तो लुटेरों ने उसे रास्ते में लूट लिया l वह इतना दुःखी था कि आत्महत्या करने को तत्पर था l संत अहमद ने उससे पूछा ---- " बहराम ! जब तुम पैदा हुए थे तो क्या ये सारा धन तुम अपने साथ लाये थे ? " बहराम ने जवाब दिया --- " नहीं , धन तो परिश्रम कर के बाद में कमाया था l " संत अहमद ने पुन: पूछा ---- " क्या मेहनत करने वाले तुम्हारे हाथ - पैरों को भी डाकुओं ने लूट लिया है ? " बहराम ने उत्तर दिया --- " नहीं मेरे हाथ - पैर तो सही - सलामत हैं l " संत अहमद बोले --- "जब तुम्हारा मेहनत करने वाला शरीर सही - सलामत है तो चिंतित क्यों हो ? " उनकी बात सुनकर बहराम के अंदर नई ऊर्जा का संचार हो गया और वह पुन: परिश्रम करने को उद्दत हो गया l
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