प्रसिद्ध साहित्यकार हरिवंश राय बच्चन ने अपनी आत्मकथा ' दशद्वार से सोपान तक ' में अपनी एक अनुभूति को लिखा है कि जब वे विदेश मंत्रालय में अवर सचिव के पद पर कार्यरत थे , तब उनका निवास २ १ ९ , डी. १ , डिप्लोमैटिक इन्क्लेव , सफदरजंग था l यहीं रहकर उन्होंने गीता का अनुवाद ' जनगीता ' के नाम से किया था l जब वे यह अनुवाद कार्य कर रहे थे , तो अनेक बार उन्हें यह स्पष्ट अनुभव हुआ कि जहाँ वे बैठे हैं , वहां कभी द्वारिका से हस्तिनापुर जाते हुए भगवान कृष्ण का रथ खड़ा हुआ था l इस क्रम में यदा -कदा रथ की , रथ में जुते थके घोड़ों की . सवार और सारथी दोनों रूपों में रथ पर बैठे श्रीकृष्ण की स्फुट झलकी मिलती थी , मानो वह साक्षात् द्वापर में उपर्युक्त तथ्य के साक्षी के रूप में विराजमान हों l
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