पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- सम्मान , प्रसिद्धि , यश , बड़ा आदमी होने का स्वांग , ये सब अहंकार के ही रूप हैं l सारी दुनिया इस ' मैं ' के कारण ही तो पागल है l यह ' मैं ' एक काला नाग है , महाविषधर सर्प है l इस महविषैले सर्प ने जिसे डस लिया , समझो उसकी खैर नहीं l अहं का विष ही सारी पीड़ा का कारण है l ------ जितना बड़ा अहंकार , उतनी बड़ी पीड़ा l अहंकार घाव है , जरा सा हवा का झोंका भी दरद दे जाता है l " स्वामी रामकृष्ण परमहंस कहते हैं ---- " जब तक अहंकार रहता है , तब तक ज्ञान नहीं होता और न मुक्ति होती है l इस संसार में बार - बार आना पड़ता है l बछड़ा ' हम्बा - हम्बा ' ( मैं , मैं ) करता है , इसलिए उसे इतना कष्ट भोगना पड़ता है l कसाई काटते हैं l चमड़े से जूते बनते हैं और जंगी ढोल मढ़े जाते हैं l वह ढोल भी न जाने कितना पीटा जाता है l तकलीफ की भी हद हो जाती है l अंत में आँतों से तांत बनाई जाती है l उस तांत से जब धुनिए का धुनहा बनता है और उसके हाथ में धुनकते समय जब तांत तूँ - तूँ करती है , तब कहीं निस्तार होता है l तब वह ' हम्बा - हम्बा ' ( हम - हम ) नहीं बोलती , तूँ - तूँ बोलती है , अर्थात हे ईश्वर , तुम ही कर्ता हो , मैं अकर्ता l तुम यंत्री हो , मैं यंत्र l तुम्ही सब कुछ हो l
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