21 January 2021

WISDOM ----- अहंकार विष है, जीवन का

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी  लिखते  हैं  ----  सम्मान ,  प्रसिद्धि  , यश , बड़ा  आदमी  होने  का  स्वांग ,  ये  सब  अहंकार  के  ही  रूप  हैं   l   सारी   दुनिया  इस  ' मैं  '  के  कारण  ही  तो  पागल  है  l   यह  ' मैं  '  एक  काला  नाग  है  ,  महाविषधर  सर्प  है   l   इस  महविषैले  सर्प  ने  जिसे  डस   लिया  ,  समझो  उसकी  खैर  नहीं   l   अहं   का  विष  ही  सारी   पीड़ा  का  कारण  है  l ------ जितना  बड़ा  अहंकार  ,  उतनी  बड़ी  पीड़ा   l   अहंकार  घाव  है  ,  जरा  सा  हवा  का  झोंका  भी    दरद   दे  जाता  है   l  "     स्वामी  रामकृष्ण  परमहंस  कहते  हैं  ---- " जब  तक  अहंकार  रहता  है  ,  तब  तक  ज्ञान  नहीं  होता   और  न  मुक्ति  होती  है   l   इस  संसार  में  बार - बार  आना  पड़ता  है  l   बछड़ा  ' हम्बा - हम्बा  ' ( मैं , मैं )  करता  है ,  इसलिए  उसे  इतना  कष्ट  भोगना   पड़ता है   l  कसाई  काटते  हैं   l  चमड़े  से  जूते   बनते  हैं   और  जंगी  ढोल  मढ़े   जाते  हैं   l  वह  ढोल  भी  न  जाने  कितना  पीटा  जाता  है  l   तकलीफ  की  भी  हद  हो  जाती  है   l   अंत  में  आँतों  से  तांत    बनाई   जाती  है  l   उस  तांत  से  जब   धुनिए   का  धुनहा   बनता  है   और  उसके  हाथ  में   धुनकते   समय  जब  तांत   तूँ  - तूँ   करती  है  ,  तब  कहीं  निस्तार  होता  है   l   तब  वह  ' हम्बा - हम्बा  ' ( हम - हम )  नहीं  बोलती  ,  तूँ  - तूँ   बोलती  है  ,  अर्थात   हे  ईश्वर  ,  तुम  ही  कर्ता   हो  ,  मैं  अकर्ता   l   तुम  यंत्री  हो  ,  मैं  यंत्र   l    तुम्ही  सब  कुछ  हो   l 

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