पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- 'मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि भावनाओं का परिष्कार है l भावनाएं न हों तो जीवन नीरस हो जायेगा l जीवन का उल्लास भावात्मक आधार पर ही बन पाता है l ये भावनाएं यदि पवित्र हो जाएँ , अंत:करण प्रेम और शीतलता से भर उठे तो मानवीय व्यक्तित्व , शांति व सुगंध का प्रतीक बन जाता है l उसमें से कुछ ऐसी सुगंध निकलती है , जो कस्तूरी मृग की कस्तूरी की तरह से समस्त उपवन को सुरभित करने में पीछे नहीं रहती l पवित्र अंत:करण वाले व्यक्तित्व इसी प्रकार समस्त वातावरण को सुगन्धित एवं सुरभित बनाते हैं l '
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