शिष्य ने गुरु से पूछा ---- ' मनुष्य एक बुद्धिमान प्राणी है फिर वह स्वाभिमान से क्यों नहीं जीवन व्यतीत करता ? " गुरु ने कहा ---- ' लोभ , लालच , कामना , वासना , धन और पद की अति महत्वाकांक्षा ये मनुष्य की कमजोरियाँ हैं , केवल स्वयं के ईमानदार प्रयास से इनका पूरा होना संभव नहीं है l ये वो खाई है जिसे पाटना संभव नहीं है लेकिन फिर भी जो इन्हें पूरा करने में सहयोग देने का लालच देता है , व्यक्ति अपना स्वाभिमान खो कर उसी के इशारों पर चलने लगता है l अति की इन महत्वाकांक्षा को पूरा करने में भौगोलिक सीमा भी बाधक नहीं होती , हर ताकतवर अपने से कमजोर को लालच देता है और दोनों के स्वार्थ पूरे होते हैं l इसमें मानवीय मूल्यों की उपेक्षा होती है इस कारण समाज का पतन होने लगता है l
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