पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- " मनुष्य मूलत: संवेदनशील प्राणी है l उसमे भाव - संवेदना लबालब भरी हुई है l यह संवेदना किसी कारणवश जब गलत दिशा में मुड़ जाती है तो मनुष्य को चोर , डाकू , लुटेरा , हत्यारा , आतंकवादी बना देती है l हीन परिस्थिति और संगति में पड़कर आदमी अपने भीतर के ईश्वरत्व के ऊपर पर्दा डाल देता है , जिसके कारण जिस मानव को ममता , करुणा , दयालुता , सेवा , सहायता का पुंज होना चाहिए , वही ईर्ष्या , द्वेष , दुर्भाव , क्रोध , असहिष्णुता जैसे आक्रामक और पशु भावों को अपनाकर पशुतुल्य प्रतीत होने लगता है l इसका मुख्य कारण परिस्थिति है l ये नकारात्मक तत्व जो मनुष्य के भीतर दिखलाई पड़ते हैं , वे वस्तुत: दमन , शोषण , उत्पीड़न और अत्याचार की प्रतिक्रियाएं हैं l " इसका एक दूसरा पक्ष भी है -- जब यह संवेदना उच्च आदर्शवादिता को अपनाती है तो संत , सत्पुरुषों और समाजसेवियों को जन्म देती है l सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध का जब दिल दहला देने वाला दृश्य देखा तो उसके भीतर की संवेदना जाग गई , उसका हृदय परिवर्तन हो गया और अब इतिहास उसे ' अशोक महान' के नाम से याद करता है l
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