कट्टरपंथी हिन्दू और मुसलमान दोनों कबीरदास जी के विरोधी थे l एक बार दोनों मिलकर बादशाह सिकंदर लोदी के पास गए l दोनों की शिकायत यह थी कि वह हमारे धर्म में हस्तक्षेप कर रहा है l मुसलमान होकर राम -राम जपकर हमारे धर्म का अपमान कर रहा है l कट्टरपंथी हिन्दुओं ने कहा --- मुसलमानों को राम -राम नहीं कहना चाहिए l कबीरदास जी को दरबार में हाजिर किया गया l दरबार में आकर उन्होंने एक बार चारों और देखा और जोर से अट्टहास कर उठे l सभी दरबारी चौंक गए l बादशाह की आँखें क्रोध से लाल हो गईं l उन्होंने पूछा ---- ' तुम्हारे हँसने का मतलब क्या है ? ' कबीरदास जी ने कहा --- " जहाँपनाह ! मैं यही चाहता था कि हिन्दू और मुसलमानों में मेल हो l मेरे इस प्रयत्न की लोग हँसी उड़ाते उड़ाते आए हैं l आज यह संभव हो गया , लेकिन मैं इन्हें ईश्वर के दरबार में मिलाना चाहता था , मगर ये लोग जहाँपनाह के दरबार में मिल रहे हैं l बस , ठिकाना जरा गलत हो गया l इसलिए मैं हँसा था l यह सिंहासन छोटा है l मैं तो उस परमेश्वर के सिंहासन के पास इन्हें ले जाना चाहता था, जो सारी दुनिया का मालिक है l ' धर्म के नाम पर लोग युगों से लड़ते चले आ रहे हैं l पीढ़ी - दर -पीढ़ी l मामला सुलझता ही नहीं l यह भी एक प्रकार का नशा है , जो ये सब कराते हैं उन्हें इसी में आनंद आता है l यह मानव जाति का दुर्भाग्य है कि अपनी ऊर्जा को लोग जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में लड़ -झगड़ कर , छल -कपट , ईर्ष्या -द्वेष , लोभ -लालच में गँवा देते हैं , इसलिए चेतना के स्तर पर मनुष्य अभी भी किस स्तर पर है ? इसका चिंतन -मनन स्वयं करे l
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