पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लघु कथाओं , घटनाओं और कथानकों के माध्यम से हमें जीवन जीने की कला सिखाई है l जीवन जीने की कला का ज्ञान न होने से ही आज संसार में हर व्यक्ति परेशान है , तनाव में है l उनका कहना है कि जीवन में आने वाले सुख -दुःख को हम सहज भाव से लें l दिन के बाद जब रात्रि आती है तो हम विचलित नहीं होते क्योंकि वह तो प्रकृति का नियम है , रात्रि तो आएगी ही , फिर रात्रि के बाद जब दिन होता है तो हम ख़ुशी से विचलित नहीं होते , रात के बाद दिन तो होना ही है l सुख -दुःख भी जीवन में इसी तरह आते हैं , अंतर केवल इतना है कि हमारे कर्मों के परिणामस्वरूप कभी -कभी रात बहुत लम्बी हो जाती है , यहाँ हमें सत्कर्म करते हुए धैर्य रखना है ' सुबह अवश्य आएगी l ----- आचार्य श्री ने ने एक घटना का उल्लेख किया है --- एक गाँव में एक आदमी की बीस लाख की लाटरी लग गई l वह बहुत ही गरीबी में दिन काट रहा था l जब लॉटरी की खबर आई उस समय वह गाँव के बाहर था l इस खबर को सुनकर उसकी पत्नी को चिंता हो गई , वह समझदार थी , उसे लगा कि अति गरीबी के हाल में इतना धन मिलने की खबर सुनकर कहीं उसके पति का हार्ट फेल न हो जाये l इसलिए वह गाँव से कुछ दूर बने मंदिर में पुजारी के पास गई l पुजारी को सब बात बताई और कहा आप तो बहुत ज्ञानी हैं , मेरे पति को ज्ञान की बातें इस तरह से समझाएं कि वे बीस लाख मिलने की बात सुनकर किसी सदमे में न आएं , न पागल हों , न हार्टफेल हो l आप समर्थ हैं उन्हें ज्ञान की बात समझा सकते हैं l पुजारी ने कहा --हाँ ठीक है , मैंने बहुत शास्त्र पढ़े हैं , मुझे ज्ञान है , मैं उसे समझा दूंगा , लेकिन बदले में तुम मुझे कितना दोगी ? उस महिला ने कहा --- 'महाराज 1 मैं आपको बीस हजार दूंगी l ' पुजारी भी बेचारा बहुत गरीब था , बीस हजार की बात सुनकर चौंका l फिर उसने कई बार बीस हजार , बीस हजार दोहराया , फिर उसे ह्रदयघात हुआ और वह मर गया l बीस हजार की ख़ुशी वह पुजारी सह न सका l इसलिए सुख हो या दुःख हम उसे सहजता से स्वीकार करें , विचलित न हों l
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