पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते है ---- जब तक व्यक्ति स्वयं न चाहे , उसके संस्कारों में परिवर्तन कठिन है l अनेक बातों को सुनने , समझने और जानने के बावजूद भी वह वही करता है जहाँ उसके संस्कार खींचते हैं , जिसके लिए उसकी वृत्तियाँ उसे वशीभूत करती हैं l ' जब व्यक्ति संकल्प ले और श्रेष्ठ गुरु के बताए मार्ग पर चले तब कठोर साधना और गुरु की कृपा से ही रूपांतरण संभव होता है l प्रवचन और रटी -रटाई बातों से संस्कार परिवर्तित नहीं होते l इस संबंध में वे बहेलिया और पक्षियों की कथा कहते हैं ----- अनेक ज्ञानीजनों ने पक्षियों को समझाया था कि बहेलिया किसी भी तरह भरोसेमन्द नहीं है l वह बड़ा चालाक , धूर्त व मक्कार है l वह जंगल में आएगा , अपना जाल बिछाएगा , उसमें दाने डालेगा , लेकिन तुम में से किसी को इसमें फंसना नहीं है l कहते हैं कि सबने यह बात पक्षियों को इतनी ज्यादा बार समझाई कि उन्हें रट गई l बहेलिया जब जंगल में आया तो ज्ञानीजनों द्वारा पढ़ाये गए पक्षी बड़े उच्च स्वर में अपने पढ़े हुए पाठ को दोहरा रहे थे l बहेलिया आएगा , अपना जाल बिछाएगा , दाने डालेगा , लेकिन इन दानों को चुगना नहीं है l किसी भी कीमत पर बहेलिए के जाल में फँसना नहीं है l बहेलिए ने पक्षियों की यह पाठ -रटन सुनी , वह चालाकी से मुस्कराया l फिर उसने हँसते हुए अपना जाल फैलाया , उसमें दाने डाले और दूर खड़ा हो गया l अपनी प्रवृत्ति के वशीभूत पक्षी अपना पाठ रटते -दोहराते उसके जाल पर आ बैठे l वे दाने चुगते गए और जाल में फँसते गए l उनकी प्रवृत्ति और संस्कारों पर इस पाठ -रटन का कोई प्रभाव नहीं पड़ा l मानव मन की स्थिति भी यही है l
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