15 June 2025

WISDOM ------

   कहते  हैं  जो  कुछ  महाभारत  में  है  ,  वही  इस  धरती  पर  है  l  महर्षि  वेद  व्यास  ने  इस  महाकाव्य  के  माध्यम  से  संसार  को  यह  समझाने  का  प्रयास  किया  कि  धन -वैभव , पद -प्रतिष्ठा  के  साथ  यदि  मनुष्य  में  सद्बुद्धि  और  विवेक  नहीं  है  ,  उसकी  धर्म  और  अध्यात्म  में  रूचि  नहीं  है    तो   ऐसा  व्यक्ति  संवेदनहीन  होता  है  और  वह  अपनी   कभी  संतुष्ट  न  होने  वाली  तृष्णा  और  महत्वाकांक्षा  के  लिए  कितना  भी  नीचे  गिर  सकता  है   l -------- दुर्योधन  के  पास  सब  कुछ  था  , लेकिन  उसे  संतोष  नहीं  था   l  वह  पांडवों  से  ईर्ष्या करता  था ,  उनकी  उपस्थिति  को  वह  बर्दाश्त  नहीं  कर  सकता  था  और  उनको  जड़  से  समाप्त कर   हस्तिनापुर  पर  अपना  एकछत्र  राज्य  चाहता  था    और  इसके  लिए  उसने  शकुनि  के  साथ  मिलकर   बहुत  ही  गुप्त  रूप  से   पांडवों  को  जीवित जला  देने  की  योजना   बनाई  l   दुर्योधन  के  मन  की  इस   घिनौनी  चाल का  पता  किसी  को  नहीं  था  l   अब  उसने   पांडवों  का  हितैषी  बनकर   अपने  पिता  धृतराष्ट्र  से  कहा  कि  वे  पांडवों  को  वारणावत   में   होने  वाले  भव्य  मेले  की  शोभा  देखने  और  सैर  करने  के  लिए   जाने  की  अनुमति  दें  l  पांडव  भी  प्रसन्न  थे  l  माता  कुंती  के  साथ  उन्होंने  पितामह  आदि  सभी  सबसे  अनुमति  ली  l  महात्मा  विदुर  से  अनुमति  लेने  वे  उनके  पास  गए  तब  विदुर जी  ने  युधिष्ठिर  से  सांकेतिक  भाषा  में  कहा  ----- "जो  राजनीतिक -कुशल  शत्रु  की  चाल  को  समझ  लेता  है  ,  वही  विपत्ति  को  पार  कर  सकता  l  ऐसे  तेज  हथियार  भी  होते  हैं  ,  जो  किसी  धातु  के  बने  नहीं  होते  , ऐसे हथियार  से  अपना  बचाव  करना  जो  जान  लेता  है  ,  वह  शत्रु  से  मारा  नहीं  जा  सकता  l  जो  चीज  ठंडक  दूर  करती  है   और  जंगलों  का  नाश  करती  है  ,  वह  बिल  के  अन्दर  रहने  वाले  चूहे  को  नहीं  छू  सकती  l  सेही  जैसे  जानवर   सुरंग  खोदकर   जंगली  आग  से   अपना  बचाव   कर  लेते  हैं  l  बुद्धिमान  लोग  नक्षत्रों  से  दिशाएं  पहचान  लेते  हैं  l  "     महात्मा  विदुर  ने  सांकेतिक  भाषा  में  दुर्योधन  के  षड्यंत्र   और  उससे  बचने  का  उपाय   युधिष्ठिर  को   सिखा  दिया  l    दुर्योधन  की  पांडवों  को  जीवित  जला  देने  की  गहरी  चाल  थी  l  उसने  अपने  मंत्री  पुरोचन  को  वारणावत  भेजकर  पांडवों  के  लिए  एक  सुन्दर  महल  बनवा  दिया  l  उस  महल  का  वैभव  और  सब  सुख -सुविधा  देखकर  प्रजा  यही  समझे  कि  दुर्योधन  पांडवों  का  हितैषी  है  l  लेकिन  सच  यह  था  कि  वह  महल  लाख  का  बना  था  ,  हर  तरह  के  ज्वलनशील पदार्थों  से  मिलकर  वह  लाख  का  महल  तैयार  हुआ  था  l  दुर्योधन  की  योजना  थी  कि  कुछ  दिन  वहां  आराम  से  रहेंगे  ,  फिर  एक  रात  उस  भवन  में  आग  लगा  दी  जाएगी  l  इस  षड्यंत्र  का  किसी  को  पता  नहीं  चलेगा   ' सांप  भी  मर  जाए   और  लाठी  भी  न  टूटे  l "    विदुर जी  की  गूढ़  भाषा  समझकर  पांडव  जागरूक  हो  गए  थे  ,  उस  लाख  के  महल  में  रहकर   और  रात्रि  भर  जागकर   उन्होंने   उस  महल  के  नीचे  से  एक  सुरंग  तैयार  कर  ली  l  लगभग  एक  वर्ष  बीत  गया  l  युधिष्ठिर  दुर्योधन  के  मंत्री  पुरोचन  के  रंग -ढंग  देखकर  समझ  गए  कि    वह  क्या  करने  की  सोच  रहा  है  l  उन्होंने  उसी  रात  एक  भव्य  भोज  का  आयोजन  किया  , सभी  नगर  वासियों  को  भोजन  कराया  गया  ,  जैसे  कोई  बड़ा  उत्सव  हो  l  सभी  कर्मचारी  , नौकर  चाकर  भी  खा -पीकर   गहरी  नींद  सो  गए  , पुरोचन  भी  सो  गया  l  आधी  रात  को  भीम  ने  ही  उस  भवन  में  आग  लगा  दी  और  पांचों  पांडव  और  माता  कुंती  सुरंग  से  सुरक्षित  बाहर  निकल  कर  सुरक्षित  स्थान  पर  चले  गए  l  दुर्योधन  आदि  कौरव  तो  मन  ही  मन  बहुत  प्रसन्न  थे  कि  पांडवों  का  अंत  हुआ  लेकिन  ' जिसकी  रक्षा  भगवान  करते  हैं , उन्हें  कोई  नहीं  मार  सकता  l  यह  प्रसंग  हमें  यही  सिखाता  है    कि  मनुष्य  को   जागरूक  होना  चाहिए  l  कलियुग  का  प्रमुख  लक्षण  ही  यही  है  कि  जिसके  पास  धन , पद  , प्रतिष्ठा   है  , उसके  सिर  पर कलियुग  सवार  हो  जाता  है   और  फिर  वह  उससे  वही  सब  कार्य  कराता  है  जो  आज  हम  संसार  में  देख  रहे  हैं  l  

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