कहते हैं जब तक व्यक्ति स्वयं न सुधारना चाहे तब तक उसे भगवान भी नहीं सुधार सकते l समाज में सुधार के लिए , राष्ट्र में और संसार में सुख शांति , सद्भाव के लिए कितने ही कानून बन गए हैं लेकिन कहीं कोई शांति नहीं है l केवल अपने अहंकार की पूर्ति के लिए , हथियारों के इस्तेमाल के लिए मनुष्य इन कानूनों का उल्लंघन करता है l सामाजिक बुराइयों को रोकने के लिए भी कितने ही नियम -कानून बन गए हैं लेकिन मनुष्य की चेतना विकसित नहीं हुई , चेतना का परिष्कार ही नहीं हुआ , इसलिए अब मनुष्य समाज से छिपकर इन बुराइयों में लिप्त रहता है l कानून बनने से कुछ फायदा तो होता है , अन्यथा जंगल राज हो जाये लेकिन चेतना का परिष्कार जरुरी है l विवेक न होने के कारण ही धन , बुद्धि , शक्ति सभी का दुरूपयोग होता है l दुर्योधन को समझाने स्वयं भगवान श्रीकृष्ण शांति दूत बनकर हस्तिनापुर गए l दुर्योधन का विवेक नष्ट हो चुका था , उसने सुई की नोक बराबर भूमि देने से भी मना कर दिया l उसकी विवेकहीनता के कारण ही महाभारत हुआ l l वर्तमान में मनुष्य पर दुर्बुद्धि कुछ इस तरह हावी है कि वह इतिहास से शिक्षा नहीं लेता , दो विश्व युद्धों का परिणाम देखकर भी उसे अक्ल नहीं आती l स्वयं को भगवान समझ कर नया इतिहास लिखना चाहता है l आचार्य श्री कहते हैं ---'स्वयं का सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है l '
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