जो ईश्वर से भय खाता है उसे दूसरा भय नहीं सताता है ।संकीर्ण स्वार्थ ,वासना और अहं से युक्त अनैतिक जीवन भय का प्रमुख कारण है ।भय का सबसे घ्रणित पहलू अपने स्वार्थ के लिए ,दूसरों पर छाये रहने की भावना से अधीनस्थ लोगों का शोषण करना है ।वैराग्यशतक में भय की स्थिति का सूक्ष्म विश्लेषण किया गया है -भोग में रोग का भय ,धन में चोरी होने का भय ,सत्ता में शत्रुओं का भय ,सौंदर्य में बुढ़ापे का भय ,शरीर में मृत्यु का भय ।इस तरह संसार में सब कुछ भय से युक्त है ।त्याग का मार्ग ही निर्भयता की अवस्था की ओर ले जाता है ।
No comments:
Post a Comment