कर्तव्य ही धर्म है ।कर्तव्य धर्म को मनीषियों ने "ऋण से मुक्ति 'कहा है ।ऋण चुका दिया ,तो उसका कोई पुरस्कार नहीं ,यदि नहीं चुकाया है तो वह अपराध है और उसका दंड मिलेगा ।इसी प्रकार कर्तव्य का ठीक से पालन किया गया तो कोई प्रतिदान नहीं लेकिन कर्तव्य पालन में चूक करने पर लिया गया ऋण नहीं चुकाने की तरह ही अपराध है ।चीन का एक अमीर भेड़ पालने का धंधा करता था ।उसने दो लड़के नौकर रखे और चराने के लिए भेड़ें बांट दीं ।कुछ दिन बाद पता चला कि भेड़ें दुबली हो गईं और कुछ मर भी गईं ।जाँच करने पर पता चला कि दोनों अपने -अपने व्यसनों में लगे रहे ।एक को जुआ खेलने की आदत थी ,जब भी दांव लगता जुए में जा बैठता और भेड़ें भूखी -प्यासी कष्ट पातीं ।दूसरा लड़का पूजा पाठ का व्यसनी था ।भेड़ों पर ध्यान नहीं देता ,अपनी रूचि के काम में लगा रहता ।दोनों पकड़े गए और न्याय के लिए कन्फ़्युशियस के सामने प्रस्तुत किये गये ।दोनों के कारणों में भेद था ,पर कर्तव्य पालन की उपेक्षा करने के लिए दोनों समान रुप से दोषी थे ।न्यायधीश ने दोनों को समान रुप से दंड दिया और कहा ,"कर्तव्य भाव के बिना जो किया जाता है वह व्यसन है ,व्यसन में जुआ खेला या पूजा की ।कर्तव्य की तो उपेक्षा की ही ।उसी का दंड दिया गया है ।
No comments:
Post a Comment