मानव जीवन की सफलता इसी में है कि हम व्यक्तिगत लाभ और सुख का विचार छोड़ कर अपनी शक्तियों का उपयोग परोपकार के लिए करें | वृक्षों में प्रतिस्पर्धा होने लगी कि कौन बड़ा होकर आसमान छू लेता है ?सबने अपना -अपना प्रयत्न किया और ऊंचाई छू लेने की प्रतिस्पर्धा में ध्यान ही नहीं रहा कि विस्तार और फैलाव भी रूक सकता है और वही हुआ | ताड़ का वृक्ष बाजी जीत गया | वह ऊँचा तो हो गया और अहंकार में गर्दन उठाये खड़ा भी रहा | | किंतु विस्तार न होने से वह किसी के उपयोग का नहीं रहा | पक्षी को छाया नहीं फल लागे अति दूर | मनुष्य यश ,धन ,पद पाकर अहंकार तो बड़ा कर सकता है किंतु ताड़ के वृक्ष की तरह उपयोगिता घटा बैठता है | प्रकृति ने यदि हमें कोई विशेष शक्ति या योग्यता दी है तो उसे परमात्मा का वरदान समझ कर उसका उपयोग लोक -कल्याण के लिये करें | ऐसा करने वाले का अमंगल कभी नहीं होता |
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