एक धनपति था | वह नित्य ही एक घी का दीपक जलाकर मंदिर में रख आता था | एक निर्धन व्यक्ति था | वह सरसों के तेल का एक दीपक जलाकर नित्य अपनी अंधेरी गली में रख देता था | दोनों मरकर यमलोक पहुंचे तो धनपति को साधारण स्थिति की सुविधाएं दी गईं और निर्धन को उच्च श्रेणी की | यह व्यवस्था देखी तो धनपति ने धर्मराज से पूछा ,यह भेद क्यों ,जबकि मैं भगवान के मंदिर में दीपक जलाता था ,वह भी घी का | धर्मराज मुस्कराए ,बोले पुण्य की महता ,मूल्य के आधार पर नहीं ,कार्य की उपयोगिता के आधार पर होती है | मन्दिर तो पहले से ही प्रकाशवान था | उस निर्धन व्यक्ति ने ऐसे स्थान पर प्रकाश फैलाया ,जिससे हजारों व्यक्तियों ने लाभ उठाया | उसके दीपक की उपयोगिता अधिक थी |
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