एक बार शरीर की सभी इंद्रियों ने हड़ताल कर दी ।उनने कहा -"कमाई हम करते हैं ,हजम सारा पेट कर जाता है ।हाथ ,पाँव ,आंख नाक ,कान आदि ने यूनियन बना ली और कहा कि हम कमाएंगे और हम ही खाएंगे ,अन्यथा काम नहीं करेंगे ।पेट ने सभी को समझाया कि तुम्हारा दिया सब कुछ तुम्हीं को तो लौटा देता हूँ ,ताकि तुम सशक्त रहो ।हड़ताल मत करो ।पर यह बात किसी इंद्रिय की समझ में नहीं आई ।उनने कहा -"तुम पूंजीपति हो ।शोषण करते हो ।जब सब अंगों ने काम करना बंद कर दिया तो भोजन पेट में कैसे पहुँचता ,इसलिए पेट भूखा रह गया ।शरीर के रस सूखने लगे ।सभी अंगों की शक्ति नष्ट होने लगी ।इंद्रियां निष्क्रिय सी हो गईं ।तब मस्तिष्क ने इंद्रियों से कहा -"मूर्खों !तुम्हारा परिश्रम अकेले पेट के पास नहीं रहता ,वह लौटकर तुम्हे ही वापस मिलता है ।दूसरों की सेवा करके हम घाटे में नहीं रहते ,जितना देते हैं ,वह ब्याज सहित वापस लौट आता है ।तुम सभी अपना कर्तव्य करो ।फल तो मिलेगा ही ।'हड़ताली इंद्रियां वापस काम पर लौट आईं ।परोपकार में बुद्धिमानी है ।इसी में हमारा सहअस्तित्व है ।
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