18 March 2013

MORALITY

'नैतिकता सर्वमान्य योग्यता '
वाराणसी नरेश ब्रह्मदत्त की अपने राजपुरोहित देवमित्र पर अटूट श्रद्धा थी | उनके व्यक्तित्व में प्रतिभा योग्यता ज्ञान के साथ शील  ,सदाचार और नैतिकता की सुगंध भी व्याप्त थी | अन्य राज्यों की जनता में उनके प्रति अपार भक्ति भाव था | राजपुरोहित के मन में एक दिन यह प्रश्न उठा कि उनके प्रति राजा और प्रजा के ह्रदय में जो श्रद्धा व सम्मान है उसका कारण क्या है ?उनका शास्त्र ज्ञान और प्रतिभा अथवा उनका शील और सदाचार ?इस प्रश्न के उत्तर के लिये उन्होंने दूसरा आचरण किया _एक दिन राजसभा केसमाप्त होने के बाद घर लौटते समय उन्होंने राजकोष से एक सिक्का उठा लिया | कोषाध्यक्ष ने यह सोचकर कि विशेष कार्य से सिक्का लिया होगा ,कुछ नहीं कहा | दूसरे दिन राजपुरोहित ने फिर सिक्का उठा लिया ,कोषाध्यक्ष ने फिर अनदेखा कर दिया | लेकिन तीसरे दिन राजपुरोहित ने जैसे ही सिक्के उठाये कोषाध्यक्ष ने उनका हाथ पकड़ लिया और सैनिकों से कहा यह धूर्त है ,चोरी करता है इसे न्याय पीठ में उपस्थित करो | पतित आचरण के कारण राजपुरोहित को हाथ बांधकर नंगे पैर ,पैदल न्यायलय में राजा के सामने लाया गया | राजा ने प्रश्न पूछे और आश्वस्त होकर निर्णय दिया कि इसने तीन बार राजकोष से धन चुराया है इसलिये इसके दाहिने हाथ की एक अंगुली काट ली जाये जिससे आगे वह ऐसे कुकर्म से दूर रहे | राजा के इस निर्णय से राजपुरोहित को अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया | उन्होंने राजा से कहा -"मैं चोर नहीं हूं ,मैं यह जानना चाहता था कि आप मुझे जो श्रद्धा व सम्मान देते हैं उसकी सच्ची अधिकारिणी मेरी योग्यता ,ज्ञान और प्रतिभा है या मेरा शील और सदाचार है | आज यह स्पष्ट हो गया कि योग्यता ज्ञान का अपना महत्व तो है लेकिन यदि वह शील ,सदाचरण से च्युत हो जाये तो ये क्षमताएं उसकी रक्षा नहीं कर सकतीं | शील सदाचरण और नैतिकता ही मेरे सम्मान का मूल कारण थीं ,उनसे च्युत होते ही मैं दंड का अधिकारी बन गया | "

No comments:

Post a Comment