अंतरिक्ष ने सूर्य से पूछा -"देव !आप सतत ताप की ज्वाला में जलते रहते हैं | एक क्षण भी विश्राम नहीं लेते हैं ,इससे आपको क्या मिलता है | "सूर्य देव मुस्कराए और बोले -"तात !मुझे स्वयं जलते हुए भी दूसरों को प्रकाश ,ताप और प्राण देते रहने में ,जो आनंद आता है उसकी तुलना किसी भी सुख से नहीं की जा सकती | "
अंतरिक्ष को अपनी भूल ज्ञात हुई तथा मालूम हुआ कि जीवन का सच्चा आनंद स्वयं कष्ट उठाकर भी दूसरों को प्रकाश ,प्रेरणा प्रदान करते रहने में है |
अंतरिक्ष को अपनी भूल ज्ञात हुई तथा मालूम हुआ कि जीवन का सच्चा आनंद स्वयं कष्ट उठाकर भी दूसरों को प्रकाश ,प्रेरणा प्रदान करते रहने में है |
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