प्राय: ईश्वर को हम मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर, गुरुद्वारा एवं वनों, गुफाओं-कंदराओं, हिमाच्छादित पर्वतों आदि बाह्य जगत में खोजते फिरते हैं, फिर भी वह ढूंढे नहीं मिलता । कारण, उसका असली मंदिर तो और कहीं है | ईश्वर का असली मन्दिर मनुष्य का अपना ह्रदयस्थल है, जो प्रकृति द्वारा निर्मित किया हुआ है और अत्यंत श्रेष्ठ एवं सुंदर है । मन में तो अच्छे-बुरे विचार आते-जाते रहते हैं, लेकिन ह्रदय तो सदभावनाओं का आश्रयस्थल है, उसका निर्माण दिव्य तत्वों से हुआ है ।
भक्त कों भगवान के दर्शन हो गये । न जाने कितने वर्षों की आकांक्षा पूरी हुई, पर मन में कोई बात थी, जो भगवान ने जान ली । भगवान ने कहा--" जो भी तुम चाहो, पूछ लो । मन में मत रखो । " रुंधे गले से भक्त बोला---" हे स्रष्टि के स्वामी ! आपके लिये सब कुछ संभव है, सब आपको उपलब्ध है, फिर भी आप सारी दुनिया से छिपकर रहते हैं, ऐसा क्यों ? "
भगवान हँसकर बोले--" छिपकर रहने में ही मेरा और सबका कल्याण है | दुनिया के हर व्यक्ति के मन में कोई न कोई कामना छिपी पड़ी है । यदि मैं प्रकट रूप में सामने आ गया तो लोग मुझे छोड़ेंगे नहीं, मेरे पीछे पड़ जायेंगे, इसलिये मैं छिपकर रहता हूँ । केवल उन्हें ही प्राप्त होता हूँ, जो अपना आत्मशोधन कर लेते हैं--कड़ा तप करके अपने कुसंस्कारों का परिशोधन कर लेते है, अपने व्यक्तित्व का परिष्कार करते हैं । "
भक्त कों भगवान के दर्शन हो गये । न जाने कितने वर्षों की आकांक्षा पूरी हुई, पर मन में कोई बात थी, जो भगवान ने जान ली । भगवान ने कहा--" जो भी तुम चाहो, पूछ लो । मन में मत रखो । " रुंधे गले से भक्त बोला---" हे स्रष्टि के स्वामी ! आपके लिये सब कुछ संभव है, सब आपको उपलब्ध है, फिर भी आप सारी दुनिया से छिपकर रहते हैं, ऐसा क्यों ? "
भगवान हँसकर बोले--" छिपकर रहने में ही मेरा और सबका कल्याण है | दुनिया के हर व्यक्ति के मन में कोई न कोई कामना छिपी पड़ी है । यदि मैं प्रकट रूप में सामने आ गया तो लोग मुझे छोड़ेंगे नहीं, मेरे पीछे पड़ जायेंगे, इसलिये मैं छिपकर रहता हूँ । केवल उन्हें ही प्राप्त होता हूँ, जो अपना आत्मशोधन कर लेते हैं--कड़ा तप करके अपने कुसंस्कारों का परिशोधन कर लेते है, अपने व्यक्तित्व का परिष्कार करते हैं । "
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