' ईर्ष्या एक प्रकार की मनोवृति है । इससे भौतिक क्षेत्र में असफलता और आध्यात्मिक क्षेत्र में अवगति प्राप्त होती है । जो इस मानसिक बीमारी से ग्रस्त हो गया, समझा जाना चाहिये कि उसने प्रगति के अपने सारे द्वार बंद कर लिये । '
राजा ने मंत्री से कहा--" मेरा मन प्रजाजनों में से जो वरिष्ठ हैं, उन्हें कुछ बड़ा उपहार देने का है । बताओ, ऐसे अधिकारी व्यक्ति कहां से और किस प्रकार ढूंढे जायें ? '
मंत्री ने कहा-- " सत्पात्रों की तो कोई कमी नहीं, पर उनमे एक ही कमी है कि परस्पर सहयोग करने की अपेक्षा वे एक दूसरे की टांग पकड़ कर खींचते हैं । न खुद कुछ पाते हैं और न दूसरों को कुछ हाथ लगने देते हैं । ऐसी दशा में आपकी उदारता को फलित होने का अवसर ही नहीं मिलेगा । " राजा बोले-- " तुम्हारी मान्यता सच है, यह कैसे माना जाये ? यदि कुछ प्रमाण प्रस्तुत कर सकते हो तो करो "
मंत्री ने बात स्वीकार कर ली और एक योजना बनाई------
' एक 6 फुट गहरा गड्ढा बनाया गया । उसमे 20 व्यक्तियों के खड़े होने की जगह थी । घोषणा की गई कि जो इस गड्ढे से ऊपर चढ़ आएगा उसे आधा राज्य पुरस्कार में मिलेगा । वे सब प्रथम चढ़ने का प्रयत्न करने लगे । जो थोड़ा सफल होता दीखता, उसकी टांग पकड़ कर शेष 19 नीचे घसीट लेते । इस प्रकार सवेरे आरंभ की गई प्रतियोगिता शाम को समाप्त हो गई । सबको असफल घोषित किया गया, पुरस्कार किसी को भी नहीं मिला ।
मंत्री ने अपने मत को प्रकट करते हुए कहा-- ' यदि यह एकता कर लेते तो सहारा देकर किसी एक को ऊपर चढ़ा सकते थे, पर वे ईर्ष्यावश वैसा नहीं कर सके । एक दूसरे की टांग खींचते रहे । "
संसार में प्रतिभावानों के बीच भी ऐसी ही प्रतिस्पर्द्धा चलती है और वे खींच-तान में ही सारी शक्ति गँवा देते हैं , उन्हें निराश हाथ मलते ही रहना पड़ता है ।
राजा ने मंत्री से कहा--" मेरा मन प्रजाजनों में से जो वरिष्ठ हैं, उन्हें कुछ बड़ा उपहार देने का है । बताओ, ऐसे अधिकारी व्यक्ति कहां से और किस प्रकार ढूंढे जायें ? '
मंत्री ने कहा-- " सत्पात्रों की तो कोई कमी नहीं, पर उनमे एक ही कमी है कि परस्पर सहयोग करने की अपेक्षा वे एक दूसरे की टांग पकड़ कर खींचते हैं । न खुद कुछ पाते हैं और न दूसरों को कुछ हाथ लगने देते हैं । ऐसी दशा में आपकी उदारता को फलित होने का अवसर ही नहीं मिलेगा । " राजा बोले-- " तुम्हारी मान्यता सच है, यह कैसे माना जाये ? यदि कुछ प्रमाण प्रस्तुत कर सकते हो तो करो "
मंत्री ने बात स्वीकार कर ली और एक योजना बनाई------
' एक 6 फुट गहरा गड्ढा बनाया गया । उसमे 20 व्यक्तियों के खड़े होने की जगह थी । घोषणा की गई कि जो इस गड्ढे से ऊपर चढ़ आएगा उसे आधा राज्य पुरस्कार में मिलेगा । वे सब प्रथम चढ़ने का प्रयत्न करने लगे । जो थोड़ा सफल होता दीखता, उसकी टांग पकड़ कर शेष 19 नीचे घसीट लेते । इस प्रकार सवेरे आरंभ की गई प्रतियोगिता शाम को समाप्त हो गई । सबको असफल घोषित किया गया, पुरस्कार किसी को भी नहीं मिला ।
मंत्री ने अपने मत को प्रकट करते हुए कहा-- ' यदि यह एकता कर लेते तो सहारा देकर किसी एक को ऊपर चढ़ा सकते थे, पर वे ईर्ष्यावश वैसा नहीं कर सके । एक दूसरे की टांग खींचते रहे । "
संसार में प्रतिभावानों के बीच भी ऐसी ही प्रतिस्पर्द्धा चलती है और वे खींच-तान में ही सारी शक्ति गँवा देते हैं , उन्हें निराश हाथ मलते ही रहना पड़ता है ।
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