प्रेम से बढ़कर इस विश्व में और कुछ भी आनंदमय नहीं । जिस व्यक्ति या वस्तु को हम प्रेम करते हैं, वह हमें अतीव सुंदर प्रतीत होने लगती है ।
इस समस्त विश्व को परमात्मा का साकार स्वरुप मानकर उसे अधिक सुंदर बनाने के लिये यदि उदार बुद्धि से लोक मंगल के कार्यों में निरत रहा जाये तो यह ईश्वर के प्रति प्रेम प्रदर्शन करने का उत्तम मार्ग होगा । इस प्रकार से की हुई ईश्वर-उपासना कभी भी व्यर्थ नहीं जाती ।
व्यक्ति यदि इतना जागरूक बन जाये कि श्रेष्ठ और सर्वोपरि सत्ता के अंशधर होने का प्रमाण-परिचय उसके क्रिया-कलापों से, मन-वचन से, रोम-रोम से मिलने लगे, तो उस उच्चस्तरीय सत्ता के प्रति यह आदर-भाव, प्रेम, निष्ठा, श्रद्धा और आस्था ही प्रार्थना बन जाती है । व्यक्ति जब अपने जीवन को भगवान के चरणों में अर्पित करता है , तो वह प्रार्थना शब्द रूप नहीं, भाव रूप बन जाती है ।
इस समस्त विश्व को परमात्मा का साकार स्वरुप मानकर उसे अधिक सुंदर बनाने के लिये यदि उदार बुद्धि से लोक मंगल के कार्यों में निरत रहा जाये तो यह ईश्वर के प्रति प्रेम प्रदर्शन करने का उत्तम मार्ग होगा । इस प्रकार से की हुई ईश्वर-उपासना कभी भी व्यर्थ नहीं जाती ।
व्यक्ति यदि इतना जागरूक बन जाये कि श्रेष्ठ और सर्वोपरि सत्ता के अंशधर होने का प्रमाण-परिचय उसके क्रिया-कलापों से, मन-वचन से, रोम-रोम से मिलने लगे, तो उस उच्चस्तरीय सत्ता के प्रति यह आदर-भाव, प्रेम, निष्ठा, श्रद्धा और आस्था ही प्रार्थना बन जाती है । व्यक्ति जब अपने जीवन को भगवान के चरणों में अर्पित करता है , तो वह प्रार्थना शब्द रूप नहीं, भाव रूप बन जाती है ।
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