अपने पिता का वध करने के बाद अजातशत्रु ने राज्य तो हासिल किया, पर उसके मन में यह बात हमेशा खटकती थी कि उसे पिता की हत्या का पाप जरुर लगेगा | प्रायश्चित विधान के लिये उसने कुछ पंडितों से परामर्श किया | उनके कहने के अनुसार सम्राट अजातशत्रु ने पशु बलि वाले यज्ञ का आयोजन किया | इस यज्ञ की खबर भगवान बुद्ध को भी लगी |
भगवान बुद्ध सीधे अजातशत्रु की यज्ञस्थली में जा पहुँचे और उन्होंने राजा के हाथ में एक तिनका देते हुए कहा-- " इसे तोड़ दो । " हँसते हुए अजातशत्रु ने उस तिनके को तोड़ दिया ।
फिर बुद्ध ने कहा-- " अब इसे जोड़ दो । " यह सुनकर परेशान होते हुए अजातशत्रु ने कहा-- " भला यह कैसे संभव है ? " ऐसा कहते हुए वह बुद्ध का मुँह ताकने लगा । तब बुद्ध ने उसे समझाया-----
" पाप का प्रायश्चित कभी पाप से नहीं हो सकता । यदि प्रायश्चित करना ही है तो लोकसेवा का कार्य करो । जीवों को सुख पहुँचाओ । परमार्थ के पुण्य कार्य करो ।
BUDDH के इस उपदेश से अजातशत्रु के जीवन की दिशा बदल गई । उसने जीवहत्या बंद करके जीवन में दया का मार्ग आपना लिया
भगवान बुद्ध सीधे अजातशत्रु की यज्ञस्थली में जा पहुँचे और उन्होंने राजा के हाथ में एक तिनका देते हुए कहा-- " इसे तोड़ दो । " हँसते हुए अजातशत्रु ने उस तिनके को तोड़ दिया ।
फिर बुद्ध ने कहा-- " अब इसे जोड़ दो । " यह सुनकर परेशान होते हुए अजातशत्रु ने कहा-- " भला यह कैसे संभव है ? " ऐसा कहते हुए वह बुद्ध का मुँह ताकने लगा । तब बुद्ध ने उसे समझाया-----
" पाप का प्रायश्चित कभी पाप से नहीं हो सकता । यदि प्रायश्चित करना ही है तो लोकसेवा का कार्य करो । जीवों को सुख पहुँचाओ । परमार्थ के पुण्य कार्य करो ।
BUDDH के इस उपदेश से अजातशत्रु के जीवन की दिशा बदल गई । उसने जीवहत्या बंद करके जीवन में दया का मार्ग आपना लिया
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