नियति को पूरी तरह भाँप लेने की सामर्थ्य अभी विकसित नहीं हुई | भविष्य तो अनागत है उसे समझना कठिन है | भाग्य और नियति अपने पूर्वकृत कर्मों का परिणाम है ।
क्या नियति को बदला जा सकता है ?
ऋषि, सिद्ध संतों का मत है कि अपने आप को बदलने और विश्व को अधिक सुंदर, उन्नत, व्यवस्थित बनाने के लिये समर्पण का मन बना लिया जाये तो नियति में बदलाव आने लगता है । तब प्रकृति एक अवसर देती है । योगी सदानंद ने इस उदारता की व्याख्या करते हुए लिखा है----
" यदि हम अपने आपको दिव्य प्रयोजनों के लिये समर्पित कर सकें तो भागवत चेतना हमारी नियति अपने हाथ में ले लेती है । इससे कर्म-बंधन छूट जाते हैं और पिछले जन्मों में किये गये कर्म केंचुली की तरह उतर जाते हैं और व्यक्ति अधिक तेजस्वी होकर चमकने लगता है । "
सिद्ध पुरुषों का कहना है ---"बदलने या सुधरने का ढोंग करके अपने लिये क्षमा नहीं बटोरी जा सकती । बाहरी दुनिया में काम करने वाली न्याय व्यवस्था को झाँसा देना कितना ही आसान हो, दिव्य प्रकृति में कोई झाँसेबाजी नहीं चलती । वहां शुद्ध ईमानदारी ही काम आती है । "
' स्वयं को कार्य में समर्पित करके परमात्मा का यंत्र बन जाना ही श्रेयस्कर है । '
क्या नियति को बदला जा सकता है ?
ऋषि, सिद्ध संतों का मत है कि अपने आप को बदलने और विश्व को अधिक सुंदर, उन्नत, व्यवस्थित बनाने के लिये समर्पण का मन बना लिया जाये तो नियति में बदलाव आने लगता है । तब प्रकृति एक अवसर देती है । योगी सदानंद ने इस उदारता की व्याख्या करते हुए लिखा है----
" यदि हम अपने आपको दिव्य प्रयोजनों के लिये समर्पित कर सकें तो भागवत चेतना हमारी नियति अपने हाथ में ले लेती है । इससे कर्म-बंधन छूट जाते हैं और पिछले जन्मों में किये गये कर्म केंचुली की तरह उतर जाते हैं और व्यक्ति अधिक तेजस्वी होकर चमकने लगता है । "
सिद्ध पुरुषों का कहना है ---"बदलने या सुधरने का ढोंग करके अपने लिये क्षमा नहीं बटोरी जा सकती । बाहरी दुनिया में काम करने वाली न्याय व्यवस्था को झाँसा देना कितना ही आसान हो, दिव्य प्रकृति में कोई झाँसेबाजी नहीं चलती । वहां शुद्ध ईमानदारी ही काम आती है । "
' स्वयं को कार्य में समर्पित करके परमात्मा का यंत्र बन जाना ही श्रेयस्कर है । '
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