' निष्काम कर्म, कर्म की साधना है इसलिये इसे सर्वश्रेष्ठ कर्म कहा गया है | '
निष्काम कर्म से अंत:करण शुद्ध एवं पवित्र होता है | इसमें प्रसिद्धि, यश, मान-सम्मान की कोई इच्छा नहीं होती । इसमें अपने मनोरथों, इच्छाओं, लालसाओं या अभिरुचियों का कोई आग्रह नहीं होता । यह कर्म अहंकार पुष्टि हेतु नहीं किया जाता । यह केवल भगवान के लिये और भगवान की आज्ञा से किया जाता है ।
यदि कोई कर्म के साथ-साथ भगवान को स्मरण कर सके एवं कर्म को सहारा देने वाली व इसे संपादित करने वाली शक्ति को अनुभव कर सके, तो वह कर्म की साधना से मिलने वाले आध्यात्मिक परिणाम को दोगुना कर देती है ।
प्रेम एवं भक्ति कर्म की मूल प्रेरक शक्ति है ।
निष्काम कर्म से अंत:करण शुद्ध एवं पवित्र होता है | इसमें प्रसिद्धि, यश, मान-सम्मान की कोई इच्छा नहीं होती । इसमें अपने मनोरथों, इच्छाओं, लालसाओं या अभिरुचियों का कोई आग्रह नहीं होता । यह कर्म अहंकार पुष्टि हेतु नहीं किया जाता । यह केवल भगवान के लिये और भगवान की आज्ञा से किया जाता है ।
यदि कोई कर्म के साथ-साथ भगवान को स्मरण कर सके एवं कर्म को सहारा देने वाली व इसे संपादित करने वाली शक्ति को अनुभव कर सके, तो वह कर्म की साधना से मिलने वाले आध्यात्मिक परिणाम को दोगुना कर देती है ।
प्रेम एवं भक्ति कर्म की मूल प्रेरक शक्ति है ।
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