भर्त्रहरि भाग्य-पुरुषार्थ पर सम्यक विचार प्रस्तुत करते हुए कहते हैं ---- रूप, कुल, शील, विद्दा, निष्ठापूर्वक की गई सेवा कोई फल नहीं देती, परंतु मनुष्य पूर्व जन्म या पहले के तप से संचित भाग्य के कारण ही समय आने पर फल प्राप्त कर लेता है, जैसे वृक्ष ऋतू में फल देते हैं |
इस तरह भाग्य की अदभुत प्रकृति के बावजूद यह कोई ऐसी चीज नहीं, जो कि आसमान से टपकती हो । वह भी वस्तुत: व्यक्ति के पुरुषार्थ का ही फल होती है । पूर्व में किया गया तप एवं पुरुषार्थ ही समय पर भाग्य बनकर फलित होता है ।
चार्ल्स रीड ने ठीक ही कहा है--- " कर्म के बीज बोने से आदत की फसल होती है, आदत के बीज बोने से चरित्र पा सकते हैं और चरित्र की फसल बोने से भाग्य की फसल पा सकते हैं । "
दुःख-संताप का कारण बनते हैं भाग्य का रोना रोते रहने वालों के लिये प्रेरणा भरे स्वामी विवेकानंद के ओजस्वी शब्द----
" भूतकाल को दफना दें, अनंत भविष्य तुम्हारे समक्ष खड़ा है । याद रखो कि हर एक शब्द, विचार और कर्म तुम्हारे भाग्य का निर्माण करते हैं । "
योगवासिष्ठ मानवीय पुरुषार्थ का प्रबल समर्थक ग्रंथ है । इसके अनुसार भाग्य की कल्पना मूर्ख व्यक्ति ही करते हैं और भाग्य पर निर्भर रहकर स्वयं का अनिष्ट कर देते हैं । बुद्धिमान लोग पुरुषार्थ द्वारा उत्तम पद प्राप्त कर लेते हैं । भाग्य और कुछ नहीं, अपने ही द्वारा किये गये पूर्वकृत कर्मों का प्रतिफल मात्र है । हमारे ही पूर्व के श्रेष्ठ कर्म सौभाग्य बनकर प्रकट होते हैं और पूर्व के दुष्कर्म दुर्भाग्य बनकर दुःख-संताप का कारण बनते हैं । इस तरह भाग्य भी प्रकारांतर में पुरुषार्थ से जुड़ा है ।
पुरुषार्थी भाग्य को तवज्जो नहीं देते । वे तो अपने पूर्वकृत कर्मो से उपजे सौभाग्य एवं दुर्भाग्य को बड़े धीरज एवं समभाव से वरण करते हैं और वर्तमान में प्रखर पुरुषार्थ करते हुए अपने उज्जवल भविष्य के महान सौभाग्य की सुद्रढ़ नींव रखते हैं ।
इस तरह भाग्य की अदभुत प्रकृति के बावजूद यह कोई ऐसी चीज नहीं, जो कि आसमान से टपकती हो । वह भी वस्तुत: व्यक्ति के पुरुषार्थ का ही फल होती है । पूर्व में किया गया तप एवं पुरुषार्थ ही समय पर भाग्य बनकर फलित होता है ।
चार्ल्स रीड ने ठीक ही कहा है--- " कर्म के बीज बोने से आदत की फसल होती है, आदत के बीज बोने से चरित्र पा सकते हैं और चरित्र की फसल बोने से भाग्य की फसल पा सकते हैं । "
दुःख-संताप का कारण बनते हैं भाग्य का रोना रोते रहने वालों के लिये प्रेरणा भरे स्वामी विवेकानंद के ओजस्वी शब्द----
" भूतकाल को दफना दें, अनंत भविष्य तुम्हारे समक्ष खड़ा है । याद रखो कि हर एक शब्द, विचार और कर्म तुम्हारे भाग्य का निर्माण करते हैं । "
योगवासिष्ठ मानवीय पुरुषार्थ का प्रबल समर्थक ग्रंथ है । इसके अनुसार भाग्य की कल्पना मूर्ख व्यक्ति ही करते हैं और भाग्य पर निर्भर रहकर स्वयं का अनिष्ट कर देते हैं । बुद्धिमान लोग पुरुषार्थ द्वारा उत्तम पद प्राप्त कर लेते हैं । भाग्य और कुछ नहीं, अपने ही द्वारा किये गये पूर्वकृत कर्मों का प्रतिफल मात्र है । हमारे ही पूर्व के श्रेष्ठ कर्म सौभाग्य बनकर प्रकट होते हैं और पूर्व के दुष्कर्म दुर्भाग्य बनकर दुःख-संताप का कारण बनते हैं । इस तरह भाग्य भी प्रकारांतर में पुरुषार्थ से जुड़ा है ।
पुरुषार्थी भाग्य को तवज्जो नहीं देते । वे तो अपने पूर्वकृत कर्मो से उपजे सौभाग्य एवं दुर्भाग्य को बड़े धीरज एवं समभाव से वरण करते हैं और वर्तमान में प्रखर पुरुषार्थ करते हुए अपने उज्जवल भविष्य के महान सौभाग्य की सुद्रढ़ नींव रखते हैं ।
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