' भक्ति वरेण्य एवं वंदनीय है | जो केवल उसी को सुलभ हो पाती है, जिस पर ईश्वर की कृपा हो । '
हमारी बुद्धि, हमारी तर्कशक्ति, सांसारिक विषयों को, इनके लाभ-हानि को बड़ी सहजता से समझ जाती है, परंतु जो विषय सांसारिक नहीं हैं, जिसमे ईश्वरीयता है, उसे समझ पाना बुद्धि व तर्क के बस में नहीं है । भक्ति का सत्य केवल ह्रदय से समझा जा सकता है । भक्ति का मार्ग अहंकार, बुद्धि व तर्क के विपरीत है ।
संत जुनैद एक बार अपने शिष्यों के साथ एक गाँव में पहुँचे । वहां के रहने वालों ने संत के साथ बड़ी बदसलूकी की और उन्हें खाने-पीने को भी नहीं पूछा ।
शाम को जब जुनैद नमाज अता करने बैठे तो वे बोले-- " खुदा परवरदिगार है और बड़ा ही दरियादिल है । यह सुनकर उनके शिष्यों ने पूछा---- " यह कैसी दरियादिली है ? हम भूखे-प्यासे हैं, गाँव वालों ने हमें जलील किया । खुदा के बाशिंदे होने के कारण क्या उन्हें हमारी देखभाल नहीं करनी चाहिये ।" संत जुनैद बोले-- "चंद रोटी के टुकड़ों या ऐशोआराम की खातिर खुदा की इबादत करना दोजख में गिरने के समान है । " सच्चा साधक वही है, जो सुख-सुविधाओं की इच्छा किये बिना निष्काम भाव से प्रभु-भक्ति में लीन रहता है ।
हमारी बुद्धि, हमारी तर्कशक्ति, सांसारिक विषयों को, इनके लाभ-हानि को बड़ी सहजता से समझ जाती है, परंतु जो विषय सांसारिक नहीं हैं, जिसमे ईश्वरीयता है, उसे समझ पाना बुद्धि व तर्क के बस में नहीं है । भक्ति का सत्य केवल ह्रदय से समझा जा सकता है । भक्ति का मार्ग अहंकार, बुद्धि व तर्क के विपरीत है ।
संत जुनैद एक बार अपने शिष्यों के साथ एक गाँव में पहुँचे । वहां के रहने वालों ने संत के साथ बड़ी बदसलूकी की और उन्हें खाने-पीने को भी नहीं पूछा ।
शाम को जब जुनैद नमाज अता करने बैठे तो वे बोले-- " खुदा परवरदिगार है और बड़ा ही दरियादिल है । यह सुनकर उनके शिष्यों ने पूछा---- " यह कैसी दरियादिली है ? हम भूखे-प्यासे हैं, गाँव वालों ने हमें जलील किया । खुदा के बाशिंदे होने के कारण क्या उन्हें हमारी देखभाल नहीं करनी चाहिये ।" संत जुनैद बोले-- "चंद रोटी के टुकड़ों या ऐशोआराम की खातिर खुदा की इबादत करना दोजख में गिरने के समान है । " सच्चा साधक वही है, जो सुख-सुविधाओं की इच्छा किये बिना निष्काम भाव से प्रभु-भक्ति में लीन रहता है ।
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