'अहंकार ज्ञान के सारे द्वार बंद कर देता है | ' अहंकार व्यक्ति और भगवान के बीच एक पर्दा है, अहंकार के कारण ही व्यक्ति के अंदर समस्त दुर्गुण एक-एक करके पैदा होने लगते हैं ।
जब व्यक्ति कर्ता बनकर किसी कार्य को करता है तब उसके अंदर अहंकार का अंकुर फूटने लगता है । यह अहंकार व्यक्ति को क्षुद्र बना देता है, फिर वह असीम ऊर्जा को धारण करने योग्य नहीं रह जाता ।
श्रीमदभगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं--- तू तो केवल निमितमात्र बन जा
अर्थात ईश्वर के विराट अस्तित्व को स्वीकार कर स्वयं को भगवान का यंत्र बना लेना ।
हमारे जीवन में ऐसा कुछ खास नहीं है कि हम अहंकार को अपने जीवन में प्रश्रय दें । हमें प्रकृति निरंतर देती रहती है-- श्वास लेने के लिये पर्याप्त आक्सीजन, पीने के लिये जल, खाने के लिये भोजन, चलने और घूमने-फिरने के लिये धरातल आदि । इतना सब कुछ मिलने के बाद यदि हम इनके प्रति कृतज्ञ न होकर स्वयं के द्वारा किये जाने वाले तुच्छ कार्यों पर घमंड करें तो यह उचित नहीं ।
भगवान की कृपा प्राप्त करने, दैवीय अनुदान पाने के लिये विनम्रता की, पवित्र भाव की जरुरत है विनम्रता व्यक्ति के अंदर पात्रता विकसित करती है । विनम्र व्यक्ति का व्यक्तित्व ग्रहणशील व सकारात्मक होता है । इसलिये यदि भगवान के समीप जाना है तो अपने अहंकार को गलाना होगा, मिटाना होगा ।
जब व्यक्ति कर्ता बनकर किसी कार्य को करता है तब उसके अंदर अहंकार का अंकुर फूटने लगता है । यह अहंकार व्यक्ति को क्षुद्र बना देता है, फिर वह असीम ऊर्जा को धारण करने योग्य नहीं रह जाता ।
श्रीमदभगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं--- तू तो केवल निमितमात्र बन जा
अर्थात ईश्वर के विराट अस्तित्व को स्वीकार कर स्वयं को भगवान का यंत्र बना लेना ।
हमारे जीवन में ऐसा कुछ खास नहीं है कि हम अहंकार को अपने जीवन में प्रश्रय दें । हमें प्रकृति निरंतर देती रहती है-- श्वास लेने के लिये पर्याप्त आक्सीजन, पीने के लिये जल, खाने के लिये भोजन, चलने और घूमने-फिरने के लिये धरातल आदि । इतना सब कुछ मिलने के बाद यदि हम इनके प्रति कृतज्ञ न होकर स्वयं के द्वारा किये जाने वाले तुच्छ कार्यों पर घमंड करें तो यह उचित नहीं ।
भगवान की कृपा प्राप्त करने, दैवीय अनुदान पाने के लिये विनम्रता की, पवित्र भाव की जरुरत है विनम्रता व्यक्ति के अंदर पात्रता विकसित करती है । विनम्र व्यक्ति का व्यक्तित्व ग्रहणशील व सकारात्मक होता है । इसलिये यदि भगवान के समीप जाना है तो अपने अहंकार को गलाना होगा, मिटाना होगा ।
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