यौवन में शक्ति के महानुदान मिलते तो सभी को हैं, पर टिकते वहीँ हैं, जहाँ इनका सदुपयोग होता है । जरा सा दुरूपयोग होते ही शक्ति यौवन की संहारक बन जाती है ।
सार्थक यौवन के लिये चाहिये--- आध्यात्मिक द्रष्टि । आध्यात्मिक द्रष्टि का मतलब किसी पूजा-पाठ या ग्रह शांति से नहीं । इसे किसी गंडे, ताबीज, मजहब अथवा धर्म से जोड़ने की जरुरत नहीं है । मंदिर-मस्जिद के झगड़ों से भी इसका कोई लेना-देना नहीं है ।
इसका अर्थ है जिंदगी की सही और संपूर्ण समझ । जीवन को सही ढंग से समझना, स्वयं की विशेषताओं को जानना, स्वयं की सामर्थ्य का सही नियोजन करना, अपनी कमियों को दूर करने का निरंतर प्रयास करना । आध्यात्मिक जीवन द्रष्टि का यही अर्थ है- स्वयं का परिष्कार करना, मनोबल को विकसित करना, नकारात्मक परिस्थितियों में सकारात्मक द्रष्टि और जितना भी संभव हो अपनी आत्मा की महान शक्ति का सदुपयोग करना ।
आध्यात्मिकता आज के युवा जीवन की आवश्यकता है, सार्थक यौवन की राह है ।
युवावस्था में भावनाओं की भटकन, जमाने का सच होने के साथ आयु का भी सच है । इस सच से सामान्य जन ही नहीं महामानव भी रूबरू हुए हैं, लेकिन वे जल्दी ही विकृति से श्रेष्ठता की ओर लौट आये । गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्दालय के संस्थापक आर्य समाज के स्वामी श्रद्धानंद अपनी युवावस्था में भावनात्मक भटकन के फेर में फँसे थे, लेकिन जल्दी ही वे इससे उबर गये । प्रसिद्ध क्रांतिकारी रामप्रसाद विस्मिल भी किशोरवय में ऐसी ही हालत का शिकार हुए थे, परंतु वे जल्दी ही संभल गये । महात्मा गांधी की जीवन कथा में उनके तनाव, आकुलता के कई शब्द हैं परंतु इन सभी महामानवों के अंतस की ईश्वर निष्ठा, आध्यात्मिक और सार्थक जीवन द्रष्टि उन्हें सन्मार्ग पर ले आई ।
सद्विचार एवं सुसंस्कारों से ही युवाओं के जीवन को, भावनाओं को सही दिशा मिलेगी ।
सार्थक यौवन के लिये चाहिये--- आध्यात्मिक द्रष्टि । आध्यात्मिक द्रष्टि का मतलब किसी पूजा-पाठ या ग्रह शांति से नहीं । इसे किसी गंडे, ताबीज, मजहब अथवा धर्म से जोड़ने की जरुरत नहीं है । मंदिर-मस्जिद के झगड़ों से भी इसका कोई लेना-देना नहीं है ।
इसका अर्थ है जिंदगी की सही और संपूर्ण समझ । जीवन को सही ढंग से समझना, स्वयं की विशेषताओं को जानना, स्वयं की सामर्थ्य का सही नियोजन करना, अपनी कमियों को दूर करने का निरंतर प्रयास करना । आध्यात्मिक जीवन द्रष्टि का यही अर्थ है- स्वयं का परिष्कार करना, मनोबल को विकसित करना, नकारात्मक परिस्थितियों में सकारात्मक द्रष्टि और जितना भी संभव हो अपनी आत्मा की महान शक्ति का सदुपयोग करना ।
आध्यात्मिकता आज के युवा जीवन की आवश्यकता है, सार्थक यौवन की राह है ।
युवावस्था में भावनाओं की भटकन, जमाने का सच होने के साथ आयु का भी सच है । इस सच से सामान्य जन ही नहीं महामानव भी रूबरू हुए हैं, लेकिन वे जल्दी ही विकृति से श्रेष्ठता की ओर लौट आये । गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्दालय के संस्थापक आर्य समाज के स्वामी श्रद्धानंद अपनी युवावस्था में भावनात्मक भटकन के फेर में फँसे थे, लेकिन जल्दी ही वे इससे उबर गये । प्रसिद्ध क्रांतिकारी रामप्रसाद विस्मिल भी किशोरवय में ऐसी ही हालत का शिकार हुए थे, परंतु वे जल्दी ही संभल गये । महात्मा गांधी की जीवन कथा में उनके तनाव, आकुलता के कई शब्द हैं परंतु इन सभी महामानवों के अंतस की ईश्वर निष्ठा, आध्यात्मिक और सार्थक जीवन द्रष्टि उन्हें सन्मार्ग पर ले आई ।
सद्विचार एवं सुसंस्कारों से ही युवाओं के जीवन को, भावनाओं को सही दिशा मिलेगी ।
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