'वैदिक वाड्मय में एक ऋचा है-- हे भगवान ! आप हमें ' मन्यु ' प्रदान करें । '
' मन्यु ' का अर्थ है वह क्रोध जो अनाचार के विरोध में उमगता है ।
वह क्रोध जो व्यक्तिगत कारणों से अहंकार पर चोट लगने से उभरता है वह निन्दित क्रोध है, असंतुलन उत्पन्न करता है । किंतु जिसमे लोकमंगल विरोधी अनाचार को निरस्त करने का विवेकपूर्ण संकल्प जुड़ा होता है वह मन्यु है । मन्यु में तेजस्विता, ओजस्विता और मनस्विता ये तीनो तत्व मिले हुए हैं । यह ईश्वरीय वरदान है । इसकी गणना उच्च आध्यात्मिक उपलब्धियों से की गई है ।
इस महान उपलब्धि से संपन्न व्यक्ति आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है । अनीति के असुर की बढ़ती जा रही विकरालता के सामने एकाकी प्रयत्न पर्याप्त नहीं हैं । ईश्वरीय संकल्प के साथ जुड़ सकी समूह शक्ति ही इसे समूल नष्ट कर सकेगी ।
गुरुगोविन्द सिंह का अध्यात्म व्यवहारिक और जीवंत था । उनने अपने शिष्यों को साधना के साथ संघर्ष का भी प्रशिक्षण दिया । समर्थ गुरु रामदास ने शिवाजी को तलवार थमाई थी । चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को अनाचार के विरोध में जीवन खपा डालने का निर्देश दिया था ।
भगवान राम ने प्रतिज्ञा की थी कि निशाचरों से इस पृथ्वी को रहित कर देंगे । भगवान कृष्ण का पूरा समय अनीति को पूरी तरह नष्ट करने में ही बीता ।
वास्तविक धर्म में तो अनीति विरोधी संघर्ष जुड़ा हुआ है, उसके लिये शौर्य-साहस की आवश्यकता है ।
' मन्यु ' का अर्थ है वह क्रोध जो अनाचार के विरोध में उमगता है ।
वह क्रोध जो व्यक्तिगत कारणों से अहंकार पर चोट लगने से उभरता है वह निन्दित क्रोध है, असंतुलन उत्पन्न करता है । किंतु जिसमे लोकमंगल विरोधी अनाचार को निरस्त करने का विवेकपूर्ण संकल्प जुड़ा होता है वह मन्यु है । मन्यु में तेजस्विता, ओजस्विता और मनस्विता ये तीनो तत्व मिले हुए हैं । यह ईश्वरीय वरदान है । इसकी गणना उच्च आध्यात्मिक उपलब्धियों से की गई है ।
इस महान उपलब्धि से संपन्न व्यक्ति आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है । अनीति के असुर की बढ़ती जा रही विकरालता के सामने एकाकी प्रयत्न पर्याप्त नहीं हैं । ईश्वरीय संकल्प के साथ जुड़ सकी समूह शक्ति ही इसे समूल नष्ट कर सकेगी ।
गुरुगोविन्द सिंह का अध्यात्म व्यवहारिक और जीवंत था । उनने अपने शिष्यों को साधना के साथ संघर्ष का भी प्रशिक्षण दिया । समर्थ गुरु रामदास ने शिवाजी को तलवार थमाई थी । चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को अनाचार के विरोध में जीवन खपा डालने का निर्देश दिया था ।
भगवान राम ने प्रतिज्ञा की थी कि निशाचरों से इस पृथ्वी को रहित कर देंगे । भगवान कृष्ण का पूरा समय अनीति को पूरी तरह नष्ट करने में ही बीता ।
वास्तविक धर्म में तो अनीति विरोधी संघर्ष जुड़ा हुआ है, उसके लिये शौर्य-साहस की आवश्यकता है ।
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