स्वामी विवेकानंद ने कहा है--- " जिस व्यक्ति की आत्मा से दूसरी आत्मा में शक्ति का संचार होता है, वह सद्गुरु कहलाता है और जिसकी आत्मा में यह शक्ति संचारित होती है, उसे शिष्य कहते हैं "
गुरु और शिष्य के बीच अंतरात्मा का संबंध होता है , आत्मा से आत्मा एकाकार होती है ।
गुरु और शिष्य के बीच यह अटूट, अखंड और अमिट रिश्ता होता है । जिस क्षण गुरु, शिष्य को स्वीकारता है उसी क्षण से यह संबंध जन्म-जन्मांतरों तक चल पड़ता है ।
सद्गुरु शिष्य को आश्वासन देते हैं-- " मैं सर्वदा तुम्हारे पास हूँ । " सद्गुरु शिष्य को आश्वस्त कर उसे अपना आदेश सुनाते हैं--- " अब जाओ संसार में निकल पड़ो और मेरी वाणी का इतना व्यापक प्रचार करो, जितना व्यापक आत्मा है, क्योंकि वही उसका जीवन है । मेरा प्रेम तथा आशीर्वाद सदैव तुम्हारे साथ है । "
हम गुरु-कार्य के प्रति अपना सर्वस्व समर्पण कर अपने अंदर के शिष्यत्व को जगाएँ तथा अपने महान गुरु के कार्य को आगे बढ़ाएं ।
ईसा मसीह के 12 शिष्य थे, इनमे से कोई भी शिष्य ईसाई धर्म का प्रवर्तक नहीं माना जाता । परंतु 250 वर्ष पश्चात सेंट पॉल के दिल की धड़कनों में ईसा मसीह के विचार धड़के । उनके विचार सेंट पॉल ईसा मसीह के सच्चे शिष्यों से भी अग्रणी हुए, क्योंकि उन्होंने उनके विचारों को स्पर्श किया, यह स्पर्श इतना मर्मस्पर्शी था कि इसने ईसा मसीह और सेंट पॉल के बीच के 250 वर्ष के लंबे अंतराल को पाट दिया और प्रभु ईसा के विचार निर्बाध रूप से प्रवाहित होने लगे ।
भगवान बुद्ध के अत्यंत निकट रहने वाले आनंद अजनबी बने रहे, पर महाकश्यप ने उन्हें अपने द्रष्टि-कमल में प्रस्फुटित पाया ।
रामकृष्ण परमहंस के संपर्क से नास्तिक नरेंद्र को स्वामी विवेकानंद बनने का अवसर मिला । उन्होंने उन्हें लोक-कल्याण के लिये जीवन समर्पित करने की प्रेरणा दी और उन्हें सच्चे अर्थों में संत बनाया ।
सद्गुरु के लिये सैकड़ों जन्म समर्पित हैं । सच्चा गुरु वहां पहुँचा देता है, जहाँ शिष्य अपने पुरुषार्थ से कभी नहीं पहुँच सकता है ।
गुरु और शिष्य के बीच अंतरात्मा का संबंध होता है , आत्मा से आत्मा एकाकार होती है ।
गुरु और शिष्य के बीच यह अटूट, अखंड और अमिट रिश्ता होता है । जिस क्षण गुरु, शिष्य को स्वीकारता है उसी क्षण से यह संबंध जन्म-जन्मांतरों तक चल पड़ता है ।
सद्गुरु शिष्य को आश्वासन देते हैं-- " मैं सर्वदा तुम्हारे पास हूँ । " सद्गुरु शिष्य को आश्वस्त कर उसे अपना आदेश सुनाते हैं--- " अब जाओ संसार में निकल पड़ो और मेरी वाणी का इतना व्यापक प्रचार करो, जितना व्यापक आत्मा है, क्योंकि वही उसका जीवन है । मेरा प्रेम तथा आशीर्वाद सदैव तुम्हारे साथ है । "
हम गुरु-कार्य के प्रति अपना सर्वस्व समर्पण कर अपने अंदर के शिष्यत्व को जगाएँ तथा अपने महान गुरु के कार्य को आगे बढ़ाएं ।
ईसा मसीह के 12 शिष्य थे, इनमे से कोई भी शिष्य ईसाई धर्म का प्रवर्तक नहीं माना जाता । परंतु 250 वर्ष पश्चात सेंट पॉल के दिल की धड़कनों में ईसा मसीह के विचार धड़के । उनके विचार सेंट पॉल ईसा मसीह के सच्चे शिष्यों से भी अग्रणी हुए, क्योंकि उन्होंने उनके विचारों को स्पर्श किया, यह स्पर्श इतना मर्मस्पर्शी था कि इसने ईसा मसीह और सेंट पॉल के बीच के 250 वर्ष के लंबे अंतराल को पाट दिया और प्रभु ईसा के विचार निर्बाध रूप से प्रवाहित होने लगे ।
भगवान बुद्ध के अत्यंत निकट रहने वाले आनंद अजनबी बने रहे, पर महाकश्यप ने उन्हें अपने द्रष्टि-कमल में प्रस्फुटित पाया ।
रामकृष्ण परमहंस के संपर्क से नास्तिक नरेंद्र को स्वामी विवेकानंद बनने का अवसर मिला । उन्होंने उन्हें लोक-कल्याण के लिये जीवन समर्पित करने की प्रेरणा दी और उन्हें सच्चे अर्थों में संत बनाया ।
सद्गुरु के लिये सैकड़ों जन्म समर्पित हैं । सच्चा गुरु वहां पहुँचा देता है, जहाँ शिष्य अपने पुरुषार्थ से कभी नहीं पहुँच सकता है ।
No comments:
Post a Comment