सामान्य जीवन में व्यक्ति के दुखों का मूल कारण बिखरी एवं बेपरवाह इच्छाओं का पनपना है । इच्छाएँ कभी पूरी नहीं होतीं, वरन हम इनके संजाल में उलझते चले जाते हैं । परिणामस्वरुप जीवन दुःखों का आगार बन जाता है । दुःखों से फिर मन में शिकवे और शिकायतों की अनकही व्यथा घर कर जाती है । इच्छाओं का उठना स्वाभाविक है, परंतु इच्छा श्रेष्ठ एवं शुभ होनी चाहिए । ऐसी इच्छाएँ हमारे जीवन को सन्मार्ग में प्रेरित करती हैं जिससे जीवन खुशहाल व समृद्ध होता है ।
एक श्रेष्ठ चाहत हमारे जीवन को बदलने में सक्षम होती है और एक बुरी कामना जीवन को गहरे दलदल में धकेलने के लिए पर्याप्त होती है । अत: हमें श्रेष्ठ एवं मंगलकामना करनी चाहिए ताकि व्यक्तित्व कई आयामों में प्रस्फुटित हो सके ।
' सफल एवं गरिमायुक्त व्यक्तित्व के निर्माण में श्रेष्ठ कामनाओं का अपार योगदान होता है । '
एक श्रेष्ठ चाहत हमारे जीवन को बदलने में सक्षम होती है और एक बुरी कामना जीवन को गहरे दलदल में धकेलने के लिए पर्याप्त होती है । अत: हमें श्रेष्ठ एवं मंगलकामना करनी चाहिए ताकि व्यक्तित्व कई आयामों में प्रस्फुटित हो सके ।
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