'झगड़ते धर्म नहीं, बल्कि मनुष्य के अहंकार और दुर्बलताएँ ही आपस में टकराती हैं । '
धर्म ईसाई हो अथवा इस्लाम या फिर कोई और वह वस्तुत: प्रेम, त्याग और सेवा के तीन शब्दों में सिमटा है । इन तीन के अलावा जहाँ अन्य कोई विरोधी भाव है, वहां न तो धर्म रह सकता है और न ही धार्मिकता पनप सकती है ।
जापानी संत नान-इन के पास एक कैथोलिक पादरी मिलने गये । उन्होंने उनसे कहा--- " मेरे पास ईसा के उपदेशों की एक पुस्तक है, यह मुझे अत्यंत प्रिय है । मैं इसे आपको पढ़कर सुनाना चाहता हूँ । " संत नान-इन ने कहा--- " अवश्य, यह तो मेरे ऊपर अनुग्रह होगा । " यह सुनकर पादरी ने
' दि सरमन ऑन दि माउन्ट ' की कुछ पंक्तियाँ पढ़ीं । इन्हें सुनकर संत नान-इन भाव-विभोर हो गये । उनके आँसू बह निकले और वह ध्यानावस्थित हो गये ।
ध्यान टूटने पर उन्होंने कहा--- " यह तो बुद्ध के वचन हैं, इन्हें सुनकर मैं धन्य हो गया । " यह सुनकर पादरी बोले--- " लेकिन ये तो ईसा की बातें हैं । " इस पर संत नान-इन ने कहा--- " तुम जो भी नाम दो, पर मैं कहता हूँ, जहाँ ज्ञान व प्रेम अपने शिखर पर होते हैं, वहां बोध होता है और वहीँ बुद्ध उपस्थित होते हैं , फिर उनका स्वरुप कोई भी क्योँ न हो । "
धर्म ईसाई हो अथवा इस्लाम या फिर कोई और वह वस्तुत: प्रेम, त्याग और सेवा के तीन शब्दों में सिमटा है । इन तीन के अलावा जहाँ अन्य कोई विरोधी भाव है, वहां न तो धर्म रह सकता है और न ही धार्मिकता पनप सकती है ।
जापानी संत नान-इन के पास एक कैथोलिक पादरी मिलने गये । उन्होंने उनसे कहा--- " मेरे पास ईसा के उपदेशों की एक पुस्तक है, यह मुझे अत्यंत प्रिय है । मैं इसे आपको पढ़कर सुनाना चाहता हूँ । " संत नान-इन ने कहा--- " अवश्य, यह तो मेरे ऊपर अनुग्रह होगा । " यह सुनकर पादरी ने
' दि सरमन ऑन दि माउन्ट ' की कुछ पंक्तियाँ पढ़ीं । इन्हें सुनकर संत नान-इन भाव-विभोर हो गये । उनके आँसू बह निकले और वह ध्यानावस्थित हो गये ।
ध्यान टूटने पर उन्होंने कहा--- " यह तो बुद्ध के वचन हैं, इन्हें सुनकर मैं धन्य हो गया । " यह सुनकर पादरी बोले--- " लेकिन ये तो ईसा की बातें हैं । " इस पर संत नान-इन ने कहा--- " तुम जो भी नाम दो, पर मैं कहता हूँ, जहाँ ज्ञान व प्रेम अपने शिखर पर होते हैं, वहां बोध होता है और वहीँ बुद्ध उपस्थित होते हैं , फिर उनका स्वरुप कोई भी क्योँ न हो । "
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