जापान के संत मेहजी अपने समय के प्रख्यात तपस्वी और दार्शनिक थे । उन से प्रेरणाएं प्राप्त करने दूर-दूर से संपन्न व्यक्ति आया करते थे । एक बार राज्यपाल कियाजाटी उनसे मिलने आये अपना कार्ड भिजवाया जिसमे उनके राज्य तथा शासनअध्यक्ष होने का उल्लेख था ।
मेहजी ने उसे पढ़ा और लाने वाले को तुरंत वापस करते हुए कहा, यहां राज्य शासन संबंधी किसी विषय पर चर्चा नहीं होती । इसलिए यदि वे वापस जाना चाहें तो जा सकते हैं ।
राज्यपाल अपनी गलती समझ गये और दूसरे कार्ड में उनने केवल अपना नाम भर
लिखा । संत ने यह कहकर उन्हें तुरंत बुला लिया-- " यहाँ हर व्यक्ति को उसके जिज्ञासु होने के नाते प्रवेश मिलता है । राज्यपाल को हम से या हमें राज्यपाल से क्या लेना-देना ।
मेहजी ने उसे पढ़ा और लाने वाले को तुरंत वापस करते हुए कहा, यहां राज्य शासन संबंधी किसी विषय पर चर्चा नहीं होती । इसलिए यदि वे वापस जाना चाहें तो जा सकते हैं ।
राज्यपाल अपनी गलती समझ गये और दूसरे कार्ड में उनने केवल अपना नाम भर
लिखा । संत ने यह कहकर उन्हें तुरंत बुला लिया-- " यहाँ हर व्यक्ति को उसके जिज्ञासु होने के नाते प्रवेश मिलता है । राज्यपाल को हम से या हमें राज्यपाल से क्या लेना-देना ।
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